ग़ज़ल
हर पल दिल ने तुझे पुकारा है यूँ अय हमराज़ मेरे |
भींग गए हैं रोते-रोते आंसू से हर साज़ मेरे ||
जी करता है - इन रश्मों की दीवारों से लड़ जाऊं,
पागलपन से भी दीवाने लगते हैं अंदाज़ मेरे ||
लहरा कर आना तेरा वो और गले से लग जाना,
इन्तिज़ार बस उन्हीं लम्हों का करते हैं राज मेरे ||
हर ज़र्रे में तुझे खोजता फिरता है ये पागल मन,
मेरा ही दिल नहीं रहा है बस में शायद आज मेरे ||
तेरी जुदाई से बढ़ कर के दर्द न मैंने देखा था,
यूँ लगता है जैसे सर पर, टूट पड़ी है गाज मेरे ||
बिखर रहा हूँ, टूट-टूट कर, पल-पल तेरी यादों में,
आ के सजा दे फिर से मेरी दुनिया, दिल के ताज मेरे ||
रचनाकार- अभय दीपराज
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