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                                  ग़ज़ल


मित्रों , हमें ज्ञान का दीपक  घर-घर  आज  जलाना  होगा |

भटक  गयी है जो  मानवता ,  उसको  राह  दिखाना  होगा ||

दिल  से  दिल  को आज जोड़ना होगा हमको आगे बढ़कर,
वर्ना, आने वाला वो कल,   दानवता   का   ज़माना   होगा ||


शत्रु   हमारा   हमे   बांटकर,   बना  रहा   कमजोर  कृपन,
असफल करके इन चालों को उसको सीख सिखाना  होगा ||


इस  आंगन  से  ही  परिभाषा,  कल  पाई  थी  आदर्शों  ने,
उसी वंश के  वंशज हैं हम,  जग  को  ये  दिखलाना  होगा ||


हर  मानव  का एक  धर्म है,  पावन  और  पवित्र  मानवता,
द्वार-द्वार  सन्देश  हमें  ये,  जाकर   के   समझाना   होगा ||


चलो मोड़ दें उन लहरों  को,   जिनसे  हम  बीमार  हुए  हैं
कृत्य ,  हमें  ये  गौरव  देने  वाला  इक  अफसाना  होगा ||


शांति और सुख के सावन से, सजे हुए जग की रचनाकर,
मित्रों !  हमें  मनुज  होने का, अपना फर्ज निभाना होगा ||

                                        रचनाकार - अभय दीपराज

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Comment by Abhinav Arun on March 10, 2011 at 9:57am

एक सच्चे कवि के धर्म का निर्वाह करती रचना के लिये साधुवाद -

बढियां पंक्ति -हर  मानव  का एक  धर्म है,  पावन  और  पवित्र  मानवता,
द्वार-द्वार  सन्देश  हमें  ये,  जाकर   के   समझाना   होगा ||

बधाई

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