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कीचड दे बौछार
             ठंडी ठंडी पवन नहीं है
              नर्म गर्म वो बदन नहीं है
              उजड़े नीद निहारे बैठी 
                          - एक अकेली डार
               गंगा ही जब उलटी बहती
               नजर एक कमरे तक रहती
               जाने कैसे गणित कहे है
                               -दो और दो है चार
                हर पगडण्डी सड़क बनी है
                 अपनी ही जब छांह घनी है
                 तब क्यों न वो छुप कर बैठे
                                    - जो कहलाता प्यार

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Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 23, 2011 at 10:50am
vandana ji charchamanch ke page mein koi takniki dikkat hai page par jate hi laptop band ho jata hai
Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 20, 2011 at 9:53pm
आभार वंदना जी 

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