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फूल को काँटा चुभाना तो कभी अच्छा नहीं
घाव देकर मुस्कुराना तो कभी अच्छा नहीं।1

प्रेम के बिरवे उगें तो वादियाँ गुलजार हों
बेरहम पत्थर उठाना तो कभी अच्छा नहीं।2

रोशनी का सिलसिला चलने लगा,चलने भी' दो
भोर का सूरज चुराना तो कभी अच्छा नहीं।3

प्यास धरती की बढ़ा क्यूँ फिर चले काली घटा?
जल रहे को फिर जलाना तो कभी अच्छा नहीं।4

दाग औरों को लगाने को सभी बेताब हैं,
आँख से काजल उड़ाना तो कभी अच्छा नहीं।5

इल्म हो कुछ तो मुकर्रर मंजिलों के वास्ते
राह में काँटें बिछाना तो कभी अच्छा नहीं।6
"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Manan Kumar singh on September 7, 2019 at 7:06pm
आभार आदरणीय समर जी,नमन।
Comment by Samar kabeer on September 7, 2019 at 11:40am

जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

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