1212-1122-1212-22
हरेक बात पे उसका जवाब उल्टा है ।।
मगर वो प्यार मुझे बेशुमार करता है।।
वो मेरे इश्क-ए- मरासिम* बनाएगा' इकदिन यूँ।(प्यार के रिश्ते)
बड़े यकींन से उल्फ़त की बात करता है।।
यूँ बर्फ आब-ओ-हवा वादियों से गुजरी हो।
उसी तरह से मेरा ज़िस्म अब पिघलता है।।
कभी भी वक्त न ठहरा हुआ लगे मुझको।
के चावी कौन भला सुब्ह शाम भरता है।।
यकीं न हो तो जरा गौर कर के देखो तुम ।
तुम्हारी आँख में भारी तुम्हारा' चश्मा है।।
मैं आईने से शिकायत कभी नहीं करता ।
जो होता' सामने' वो साफ़ साफ़ कहता है।।
तुम्हारी उम्र में शीला ,बदन में मुन्नी और।
तुम्हारी चाल है नागिन, ये गाँव कहता है।।
आमोद बिन्दौरी /मौलिक अप्रकाशित
Comment
रदीफ़ "है" ही ठीक है ।
आ समर दादा प्रणाम
जी दादा अगली बार से अर्थ नीचे लिखूंगा
जी दादा ..इसमें यूँ" बढ़ गया मेरी तख्तिया त्रुटि है ।
दादा मैं इस में रदीफ़ ..है" कि जगह था " करना चाहता हूँ ।
और अंतिम शेर में स्पस्ट करना चाहता था कि ये स्त्री या पुरुष किसके साथ है ।
पर अल्प ज्ञान के कारण कर नहीं पाया
जनाब आमोद बिंदौरी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'वो मेरे इश्क-ए- मरासिम* बनाएगा' इकदिन यूँ'
इस मिसरे की बह्र चेक करें ।
शब्दों के अर्थ ग़ज़ल के अंत में लिखा करें ।
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