For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुछ अनमोल रिश्ते   ( कहानी )

बचपन में  हमने  अपने दादा दादी और नाना नानी को तो नहीं देखा था ,पर हमारे पड़ोस में एक बुजुर्ग महिला जो अपने परिवार के साथ रहा करती थी । उन्ही से हमें बहुत प्यार मिला करता  उनका अकसर  हमारे घर में बिना नागा  जाना जाना  हुआ करता था ।हम उन्हें आमा यानी नानी कहा करते थे ।

वे जब भी हमारे घर आती थी,माँ उन्हें बड़े प्यार से बिठा कर चाय नाश्ता दिया करती थी । वे चाय नाश्ते के चुस्कियो के साथ-साथ अपनी हर छोटी-छोटी बातें ,हर दर्द हर दुख सुख माँ के साथ बाँटा करती थी। माँ भी उनकी हर बात बहुत ध्यान से सुनती और साथ ही उन्हें हिम्मत और तसल्ली भी देती रहती सब ठीक हो जायेगा चिंता मत करो ।धीरे धीरे उनका हमारे घर पर आना जाना इतना  अधिक होने लगा कि जिस दिन वो नहीं आती माँ को चिन्ता सी होजाती वे आज क्यों नहीं आई कहीं वे बीमार तो नहीं पड़ गई ? माँ की उनके लिए इतनी अधिक चिन्ता हम भाई बहनों कोकभी कभी  अच्छी नहीं लगती थी। हम सोचा करते थे उनका अपना भरा पूरा परिवार तो है बेटे बहू नाती पोते सभी तो हैउनके पास  ,फिर माँ उनकी इतनी फिक्र क्यों किया करती है?

समय बीतता रहा.उनका आना जाना उनकी गप शप और चाय नाश्ता यूँ ही चलता रहा ।जाड़ो के दिन शुरू होगए थे इधर कुछ दिनों से आमा भी हमारे घर नहीं आ पाई थी । एक दिन माँ अचानक परेशान होकर कहने लगी “तुम्हें पता है आमा बहुत बीमार है ..मैं उनसे मिलकर आरही हूँ कुछ दिनो से उन्होने कुछ भी नही खाया है ।मुझे देख कर कहने लगी मुझे तेरे हाथों की ही  चाय पीनी है ,कह कर  उनके लिए चाय बनाने लगी । माँ ने उनके लिए जल्दी जल्दी अदरक वाली चाय बनाई और सूजी का हल्वा बनाया ,जो उन्हें बहुत पसंद था  । बड़े प्यार से सब कुछ पैक कर वहाँ ले गई और हम देखते ही रहे । दूसरे दिन की सुबह उनके यहाँ कुछ शोर सा सुनाई दिया,माँ और मैं दौड़ कर वहाँ पहुँचे ,देखा आमा बेहोशी की हालत में पड़ी थी ,और घर वाले इर्द गिर्द हाथ बाँधे खड़े थे माँ ने उनके ठंड़े सूखे हुए हाथ को छूआ  माँ का स्पर्श पा कर मानो उनमें नई चेतना सी जाग गई हो उन्होंने अपनी पथराई हुई आँखे धीरे से खोली मानो कुछ कहना चाहती हो..मगर कह न पाई बस आँखो से दो बूँद आँसू छलक पड़े और शायद ये आँसू बहुत कुछ कह भी गए  बस फिर हमेशा के लिए उन्होंने अपनी आँखे बंद कर ली और शान्त हो गई हमेशा के लिए न कोई गिला न कोई शिकायत ..  सारे दुख दर्द यही छोड़कर कहीं दूर चली गई हमारी आमा |

उस वक्त हम उनकी बातें समझ नहीं पाते थे पर आज लगता है वो अपने भरे पूरे परिवार के बीच होते हुए भी खुद को कितनी अकेली महसूस करती होगी । चाय नाश्ता तो सिर्फ एक बहाना था, वो तो प्यार  और अपने पन की भूखी थी । शायद इसी लिए वो हमारे घर आया करती थी । आज हमारे बीच न तो माँ है न हीं आमा मगर बचपन की वो सारी बातें  याद कर आज भी आँखे  भर आती है

********************************

मौलिक /अप्रकाशित 

महेश्वरी कनेरी 

Views: 618

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Maheshwari Kaneri on March 11, 2019 at 5:45pm

आदरणीय कवीर जी .आप का बहुत बहुत आभार 

Comment by Maheshwari Kaneri on March 11, 2019 at 5:43pm

आदरणीय रक्षिता जी .हौसला अफजाई के लिए आप का बहुत बहुत आभार 

Comment by रक्षिता सिंह on February 8, 2019 at 10:58am

 आदरणीया कनेरी जी, नमस्कार 

भावविभोर कर देने वाली सुंदर लघुकथा। 

Comment by Samar kabeer on February 7, 2019 at 2:56pm

मुहतरमा महेश्वरी कनेरी जी आदाब,अच्छी कहानी लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी, कुछ और प्रयास करने का अवसर मिलेगा। सादर.."
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"क्या उचित न होगा, कि, अगले आयोजन में हम सभी पुनः इसी छंद पर कार्य करें..  आप सभी की अनुमति…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय.  मैं प्रथम पद के अंतिम चरण की ओर इंगित कर रहा था. ..  कभी कहीं…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
""किंतु कहूँ एक बात, आदरणीय आपसे, कहीं-कहीं पंक्तियों के अर्थ में दुराव है".... जी!…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी जी .. हा हा हा ..  सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य आदरणीय.. "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी  प्रयास पर आपकी उपस्थिति और मार्गदर्शन मिला..हार्दिक आभारआपका //जानिए कि रचना…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।छंदो पर उपस्थिति, स्नेह व मार्गदर्शन के लिए आभार। इस पर पुनः प्रयास…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। छंदो पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन।छंदों पर उपस्थिति उत्तसाहवर्धन और सुझाव के लिए आभार। प्रयास रहेगा कि…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हर्दिक धन्यवाद, आदरणीय.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह वाह ..  दूसरा प्रयास है ये, बढिया अभ्यास है ये, बिम्ब और साधना का सुन्दर बहाव…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service