For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हौं पंडितन केर पछलगा *उपन्यास का एक अंश )

चौदहवीं की रात I निशीथ का समय I चाँद अपने पूरे शबाब पर I जायस के कजियाना मोहल्ले में एक छोटे से घर की छत पर गोंदरी बिछाए वही लम्बी सी पतली लडकी लेटी थी I उसकी सपनीली आँखों से नींद आज गायब थी I उसकी आँखों के सामने मुहम्मद का भोला किंतु खूबसूरत चेहरा बार-बार घूम जाता I कभी-कभी ऐसी नाटकीय घटनायें हो जाती हैं कि हम बेक़सूर होकर भी दूसरे की निगाहों में कसूरवार हो जाते हैं I उस लड़के ने मुझे उस हंगामे से बचाया I मेरा हाथ थामा I मुझे पानी से निकाला I हाथ थामने के मुहावरे का अर्थ सोचकर उसे उस सन्नाटे में भी कुछ लाज सी लगी I उसने अपने हाथ पर मुहम्मद के हाथों का दबाव फिर से महसूस किया I उसे अजीब सी बेचैनी महसूस हुयी – ‘हाय अल्लाह--- यह मुझको क्या हो गया ? मेरी आँखों की नींद क्यों काफूर हो गयी ?‘ विचारों ने फिर करवट बदली – ‘ वह शायद उसके पिता रहे होंगे, जिन्हें देखकर वह सहम गया था I उसके पिता ने मेरे बारे में क्या सोचा होगा ? मुझे ऐरी-गरी लडकी ही समझा होगा I किस कदर पानी से सराबोर थी मैं और वह भी I लो, मुझे तो बस अपनी ही चिंता है I उस लड़के की क्या दशा हुई होगी ? उसे अपने सीने में एक हूक सी उठती मालूम हुयी I वह मानो किसी जादू के असर से उठकर बैठ गयी I उसने पानी से अपना हाथ मुँह धोया और फिर अपना दुपट्टा सिर में लपेटकर नमाज पढ़ने लगी I नमाज पढ़ने से उसका ध्यान जो बंटा, उससे उसने राहत महसूस की I उसने एक बार फिर सोने की कोशिश की I सोते ही उस पर एक अजगुत सपना तारी हुआ I संध्या का समय I आधा चाँद I एक बड़ी ही खूबसूरत पहाड़ी नदी I नदी का वलयाकार घुमाव I वह आड़े-तिरछे अनगढ़ पत्थरों पर पाँव रखती नदी की बीच धारा में एक ऊँची चट्टान पर बैठी है I चारों और बस एक निस्तब्ध वातावरण है I कोई आदमी न आदमजात I सर्द हवा शरीर को बेध रही है I कुछ हिरण आकर नदी में पानी पीते हैं I हवा में झरता संगीत कुछ कहता है I लडकी सुनने का प्रयास करती है I पर कुछ समझ में नहीं आता I अचानक दूर से आती रबाब की आवाज सुनाई देती है I रवाब की धुन पर एक सोज आवाज उभरती है –‘ आवाज का दर्द लडकी के कानों में पिघले शीशे के मानिंद उतरता है - बाल्हा आव हमारे गेह रे, तुम बिनु दुखिया देह रे I एकमेक ह्वै सेज न सोवै, तब लग कैसा नेह रे I अन्न न भावै ,नींद न आवै ,मनवा धरे न धीर रे I बाल्हा आव हमारे गेह रे ------- लडकी जल-विहीन मछली की भाँति तड़प उठती है I उसकी आँखों से झर-झर कर आँसू बहने लगते हैं I वह विक्षिप्तों की तरह पुकारती है – ‘कहाँ हो तुम ? ‘ ‘कहाँ हो तुम ? ---कहाँ हो तुम ? ----कहाँ हो तुम ?’- पर्वतों से टकराकर प्रतिध्वनि लौट-लौट आती है I रबाब की आवाज मंद पड़ जाती है I स्वर का आना थम जाता है I लडकी को अन्तरिक्ष से आती बस एक ही ध्वनि सुनाई देती है – ‘बाल्हा आव हमारे गेह रे----‘ अचानक वातावरण में तेजी से परिवर्तन होता है I चाँद गायब हो जाता है I चारों ओर घना अँधेरा फ़ैल जाता है I हवा बंद हो जाती है I नदी का कल-नाद और मुखर होता है I चमगादड़ फड़फड़ाने लगते हैं I उल्लुओं की आवाज सुनायी देती है I झींगुर झंकारते हैं I किसी का क्रूर अट्टहास सुनाई देता है I लडकी डर के मारे थर-थर काँपने लगती है I नदी में सैलाब आ जाता है I लडकी उसमें ऊभ-चूभ होने लगती है I वह अवलम्ब की तलाश में अपने हाथ पसारती है – ‘बचाओ ---बचाओ I ‘ नदी का सैलाब तेज होता जाता है I लडकी निराश्रित धारा में बही जा रही है I वह अपनी चेतना खोने लगती है, तभी अचानक एक मजबूत हाथ उसके निरवलम्ब हाथ को थाम लेता है और जोर से अपनी ओर खींचता है I लडकी को यह हाथ जाना-पहचाना सा लगता है I उसके मुख से अपने आप निकलता है – ‘बाल्हा आव हमारे गेह रे-----I’ फिर मानो उसकी चेतना लौटती है- ‘ओह मुहम्मद, मेरा हाथ मत छोड़ना I कभी मत छोड़ना तुम I‘ ‘क्या बडबडा रही है तू ?’ – माँ ने उसे झिंझोड़ कर जगाया – ‘कोई बुरा सपना देखा है क्या ?’ लडकी उठकर बैठ गयी I दिन निकल आया था I उसने माँ की ओर देखकर उदास स्वर में कहा – ‘हाँ माँ, सपना ही तो था I ‘

(मौलिक / अप्रकाशित )

Views: 511

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on December 5, 2018 at 11:36am

जनाब डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,आपके उपन्यास के अंश पढ़ने के बाद उपन्यास पढ़ने को दिल बेक़रार है,

'जब रात है ऐसी मतवाली

तो सुब्ह का आलम क्या होगा'

बहुत बहुत बधाई आपको ।

Comment by Samar kabeer on December 1, 2018 at 11:31am

समय मिलते ही पुनः आता हूँ,इस प्रस्तुति पर ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, पहलगाम की जघन्य आतंकी घटना पर आपने अच्छे दोहे रचे हैं. उस पर बहुत…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, महाकुंभ विषयक दोहों की सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. एक बात…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"वाह वाह वाह !  आदरणीय सुरेश कल्याण जी,  स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे महान व्यक्तित्व को…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"जय हो..  हार्दिक धन्यवाद आदरणीय "
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  जिन परिस्थितियों में पहलगाम में आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया गया, वह…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी left a comment for Shabla Arora
"आपका स्वागत है , आदरणीया Shabla jee"
yesterday
Shabla Arora updated their profile
yesterday
Shabla Arora is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय सौरभ जी  आपकी नेक सलाह का शुक्रिया । आपके वक्तव्य से फिर यही निचोड़ निकला कि सरना दोषी ।…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"शुभातिशुभ..  अगले आयोजन की प्रतीक्षा में.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"वाह, साधु-साधु ऐसी मुखर परिचर्चा वर्षों बाद किसी आयोजन में संभव हो पायी है, आदरणीय. ऐसी परिचर्चाएँ…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रदत्त विषयानुसार मैंने युद्ध की अपेक्षा शान्ति को वरीयता दी है. युद्ध…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service