For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रुके हुए शब्द- कहानी

ट्रेन स्टेशन छोड़ चुकी थी, रिज़र्वेशन वाले डब्बे में भी साधारण डब्बे जैसी भीड़ थी. अपना बैग कंधे पर टाँगे और छोटा ब्रीफकेस खींचते हुए शंभू डब्बे में अंदर बढ़े. लगभग हर सीट पर कई लोग बैठे हुए थे और शंभू को कहीं जगह नजर नहीं आ रही थी. जहां भी वह बैठने का प्रयत्न करते, लोग उन्हे झिड़क देते. अचानक साइड वाली एक सीट पर उनकी नजर पड़ी जहां सिर्फ एक ही व्यक्ति बैठा हुआ था. शंभू लपक कर सीट पर एक तरफ बैठ गये और अपना ब्रीफकेस उन्होने सीट के नीचे घुसा दिया. अक्सर सफर करनेवाले शंभू को इन परिस्थितियों से भी अक्सर दो चार होना पड़ता था.

कंधे पर टंगा बैग उन्होने बगल में रखा और पहली बार साथ बैठे यात्री पर उसकी नजर पड़ी. उस अधेड़ व्यक्ति की तरफ देखकर वह हौले से मुस्कुराये और लंबी सांस लेकर बोले “बाप रे, कितनी भीड़ है आज और ऊपर से रिजर्वेसन भी कनफर्म नहीं हुआ”.

वह अधेड़ व्यक्ति भी मुस्कुराया और उसने यूँ ही पूछ लिया “कहाँ तक जाना है?

“जाना तो भोपाल तक है लेकिन देखते हैं कि कहाँ तक बर्थ मिल पाती है. आपकी तो सीट कनफर्म है ना, अच्छा है. आपके साथ कुछ देर तक ऐसे ही बैठ कर चला जाऊंगा”, शंभू ने बड़े प्यार से बताया.  

“कोई बात नहीं, चल चलिये साथ. मुझे भी इटारसी तक जाना है, बेटे के पास”, अधेड़ ने आश्वस्त करने वाले शब्दों में कहा तो शंभू के दिल को राहत मिली और उन्होने उसे बड़ा सा धन्यवाद दिया.

“लगता है आपका बेटा आपको बहुत प्यार करता है, वरना आजकल कहाँ बेटे पिता को अपने पास बुलाना चाहते हैं”, शंभू ने अपनी तरफ से खूब मिठास घोलते हुए कहा. उनको पक्का यकीन था कि इस तरह से बात कहने से आगे के सफर में कोई परेशानी नहीं आएगी.

अधेड़ ने शंभू को देखा और मुसकुराते हुए बोले “सही कह रहे हैं आप, इस जमाने की परछाईं भी नहीं पड़ी है उसपर. और ऊपर से बहू भी बहुत सुशील और प्यारी है, बहुत ख्याल रखती है मेरा”. अब तो शंभू ने लगभग सीट पर अपना कब्जा जमा लिया था और मजे में बैठकर अधेड़ की बात सुन रहे थे.

काफी देर तक दोनों की बातचीत चलती रही, इस बीच एक चायवाला भी गुजरा और शंभू ने जबरन चाय अधेड़ को भी पिला दी. ट्रेन चले एकाध घंटा हो गया था और अभी तक टी टी नहीं आया था. रात भी हो चली थी और खाने का समय भी तो शंभू ने अपना टिफ़िन खोला और सामने वाले अधेड़ से बड़े इसरार से पूछा“मुझे तो भूख लग रही है, चलिये खाना खा लेते हैं, आप भी खाइये ना”.

“नहीं, नहीं, आप खाइये, मैं भी कुछ खाने के लिए ले लाया हूँ”, अधेड़ ने कहते हुए अपना झोला उतारा. शंभू अब कहाँ मानने वाले थे, उन्होने अपना टिफ़िन खोला और ढक्कन में दो पूरी और सब्जी अधेड़ की तरफ बढ़ा दी. अधेड़ ने भी अपना पुराना झोला उतारा और अपना डिब्बा निकाला, फिर उन्होने संकोच के साथ पूछा “अगर आपको ऐतराज न हो तो एक रोटी हमारी भी खाइये”. अब शंभू को इसमें क्या ऐतराज हो सकता था और वह रोटी लेकर खाने लगे. खाना खतम होते होते टी टी आ गया और उसने सबसे टिकट पूछना शुरू कर दिया.

“इसपर होरी राम कौन है?, टी टी की आवाज पर अधेड़ ने कहा “मैं हूँ साहब” और अपना टिकट निकाल कर दिखा दिया.

“और आपका टिकट, कौन सी बर्थ है आपकी?, टी टी ने पूछा तो शंभू दीन हीन चेहरा बनाकर खड़े हुए और बोले “हमारा वेटिंग ही रह गया, संभव हो तो कोई सीट दे दीजिये सर”.

“अभी तो नहीं है, लेकिन एक बार चेक कर लेने दीजिये, शायद कोई मिल जाये”, टी टी ने बिना उनके चेहरे की तरफ देखे कहा और आगे बढ़ गया. उसके जाने के बाद शंभू ने तुरंत गौर से अधेड़ की तरफ देखा, अधपकी दाढ़ी, मुड़ा चुड़ा कुर्ता और वैसा ही पाजामा. झोला तो पहले ही देख चुके थे शंभू और फिर नाम सुनकर पूरा विश्वास हो गया कि यह शख्स अपनी ऊँची जात का नहीं है.   

अब शंभू थोड़ा किनारे की तरफ दब गए और मन ही मन उनको बहुत कोफ्त होने लगी कि इसका खाना क्यूँ खा लिया. और फिर होरी राम को भी उन्होने खाना खिला दिया. अगर शुरू में ही ध्यान दे दिये होते तो शायद आभास तो हो ही जाता और उसका खाना खाने से बच जाते. और अब अगर सीट नहीं मिली तो पूरा रास्ता इसी के साथ काटना पड़ेगा, शंभू को बेचैनी सी होने लगी.  

“अरे आप आराम से बैठ जाओ, मुझे कोई दिक्कत नहीं है”, होरी राम ने कहा तो इस बार शंभू को मुसकुराते नहीं बना. वह एक बार उसकी तरफ देख कर थोड़ा हिले गोया फैल रहे हों लेकिन वैसे ही बैठे रहे. अब उसको कुछ कह तो नहीं सकते थे क्योंकी सीट उनकी तो थी नहीं लेकिन वह शुरुआती दौर की खुशी अब उनके चेहरे से गायब थी. बार बार उनकी निगाह डब्बे के दूसरे छोर की तरफ जाती जिधर टी टी गया था. कुछ देर में रहा नहीं गया तो उठकर उसी तरफ बढ़ गए, आखिरी बर्थ पर टी टी बैठा हुआ था.  

“सर, एक सीट मिल जाती तो मेहरबानी होती”, यथासंभव अपनी मुस्कुराहट बिखेरते हुए उन्होने टी टी से कहा.

पहली बार तो टी टी ने ध्यान ही नहीं दिया, वह अपने चार्ट में जुटा हुआ था. फिर दुबारा कहने पर टी टी ने एक नजर उनको देखा और फिर इंकार में सर हिला दिया “अभी कोई नहीं है, दो तीन स्टॉप बाद देखेंगे”. मायूसी में गर्दन लटकाए और भुनभुनाते हुए शंभू वापस लौटे.

इधर अपनी सीट पर वह अधेड़ अब पसर गए थे और अब वहाँ बैठना शंभू को बड़ा अजीब सा लगा. आखिर किसी छोटी जात वाले के पैताने कैसे बैठ जाएँ, और जमीन पर बैठने में भी उतनी ही हिचक हो रही थी. इसी उधेड़बुन में वह खड़े थे कि उनको छींक आ गयी और होरी राम ने उनको पलट कर देखा.

“अरे बैठिए आप भी, मैं तो बस यूँ ही पैर सीधा कर रहा था”, कहते हुए होरी राम उठ कर बैठ गए. शंभू भी एक किनारे फीकी मुस्कान फेंकते बैठ गए. इस बार धन्यवाद का शब्द उनके गले में ही अटक गया और वह मन ही मन टी टी को कोसने लगे.   

“कितनी बार मना किया था बेटे को लेकिन माना ही नहीं और टिकट कटा दिया. अब इस उम्र में यात्रा करने में दिक्कत होती है लेकिन उसकी बात भी तो माननी पड़ती है”, होरी राम शंभू की तरफ देखकर बताने लगा. शंभू सुन कर भी जैसे कुछ नहीं सुन रहे थे और होरी राम को बीच बीच में देख लेते थे.

“अच्छा आपका घर है भोपाल या किसी काम से जा रहे हैं वहाँ”, प्रश्न सुनकर शंभू ने होरी राम की तरफ देखा और अनिच्छा से जवाब दिया “किसी काम से जा रहा हूँ, अक्सर इसी तरह भागदौड़ करनी पड़ती है”.  

“और घर में कौन कौन है, कितने बच्चे हैं? अब होरी राम शंभू से बातचीत करने के मूड में आ गए थे. शायद खाना खाने के बाद उनको लगा कि उन्होने सामने वाले से तो कुछ पूछा ही नहीं. शंभू ने फिर से होरी राम की तरफ देखा और बहुत बोझिल स्वर में बोले “दो बेटे हैं और दोनों पढ़ रहे हैं”. इससे ज्यादा वह कुछ बताने के मूड में नहीं थे और आसन्न प्रश्न के चलते उन्होने उठ कर बाथरूम की तरफ जाना ही मुनासिब समझा.   

बाथरूम से लौटते समय फिर उनको टी टी दिख गया और एक बार फिर उन्होने अपने आप को पूरी तरह विनम्र बनाते हुए पूछा “कोई बर्थ है क्या सर, रात बिताना बहुत मुश्किल लग रहा है?

टी टी के नकारात्मक जवाब ने उनको निराश कर दिया लेकिन उनके मन में अभी भी उम्मीद बाकी थी कि शायद आगे चलकर बर्थ मिल ही जाये. ऐसा पहले भी हुआ ही था जब कई स्टेशन बाद उनको बर्थ मिल गयी थी. हर तरफ लोग डब्बे के फर्श पर बिछा कर सोने का उपक्रम करने लगे थे और एक बार उन्होने भी सोचा कि रात में नीचे भी सो गए तो क्या फर्क पड़ेगा. खैर निराश कदमों से वह वापस आए और खामोशी से बर्थ पर एक किनारे बैठ गए. 

समय बीत रहा था, ट्रेन अपनी रफ्तार से चल रही थी. अब शंभू को निराशा घेरने लगी. एक तो नींद अब हावी हो रही थी और दूसरे कोई सीट मिलने की संभावना धीरे धीरे क्षीण होती जा रही थी. और साथ ही साथ दिल और दिमाग की जंग भी चल रही थी. दिल वहाँ बैठने के खिलाफ था तो वहीं दिमाग कह रहा था कि सफर में तो यह सब होता ही है. अब अगर उस अधेड़ का नाम नहीं सुने होते तब तो कोई दिक्कत थी ही नहीं लेकिन जान बूझकर कैसे उसके पैताने बैठें. एक बार उन्होने होरी राम पर नजर डाली, वह अब फिर से अधलेटा होकर खर्राटे बजाने लगा था. अपने आप को यथासंभव बचाते हुए शंभू ने भी पैर को सीट के ऊपर रखा और सोने की कोशिश करने लगे.   

एक स्टेशन पर ट्रेन रुकी, बाहर के शोर से शंभू और होरी राम की आँख भी खुल गयी. शंभू ने पीठ सीधी करते हुए समय देखा, रात के बारह बजने वाले थे. होरी राम उठकर बाथरूम की तरफ निकाल गए और शंभू ने तुरंत अपना गमछा निकालकर आधे में बिछा लिया. अब उनको उम्मीद थी कि होरी राम उनके गमछे वाले क्षेत्र में शायद अतिक्रमण नहीं करें. अब वह पालथी मार कर बैठ गए और सर को सीट के पिछवाड़े टिका दिया. होरी राम ने आने के बाद शंभू को सोते देखा तो वह भी बैठ गए और एक बार फिर से उन्होने शंभू से इसरार किया “आप पूरा पैर फैलाकर सो जाइए, हम अभी बैठते हैं. हमारा स्टेशन सुबह जल्दी आ जाएगा, आपको तो आगे भी जाना है”.

शंभू ने बस सर हिलाकर हूँ कहा और इस तरह दर्शाया जैसे वह अब गहरी नींद में सो रहे हों. होरी राम चुपचाप बैठ गए और खिड़की से बाहर देखने लगे. ट्रेन चल दी और उसी समय एक दूसरे टी टी ने डब्बे में प्रवेश किया. जैसे ही उसने होरी राम का टिकट देखा, शंभू लपक कर खड़े हो गए और एक बार फिर से उन्होने अपनी व्यथा टी टी के सामने रखी. टी टी ने चार्ट देखा और उनको आगे की एक सीट की तरफ इशारा करते हुए कहा “उस सीट पर चले जाइए, अगले स्टेशन पर खाली हो जाएगी”.

टी टी आगे बढ़ा, शंभू ने तुरंत गमछा सीट से उठाया और उसे कस कर झाड़ा. अपना बैग कंधे पर टाँगते हुए वह सीट के नीचे से अपना ब्रीफकेस निकालने लगे. होरी राम ने थोड़ा रुकने के लिए कहा लेकिन शंभू ने उसे अनसुना कर दिया. तुरंत अपना ब्रीफकेस खींचते हुए शंभू आगे बढ़ गए, होरी राम अपनी सीट पर अब पूरी तरह पसर गए. जाते समय भी धन्यवाद का शब्द शंभू के गले में ही फंस कर रह गया, ट्रेन अपनी स्पीड में अपने गंतव्य की तरफ जा रही थी.    

 मौलिक एवम अप्रकाशित  

Views: 666

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on August 15, 2018 at 6:17pm

बहुत बहुत आभार आ बबीता गुप्ता जी

Comment by babitagupta on August 15, 2018 at 4:36pm

ऊँच-नीच का भेदभाव दिमाग में परिचय मिलते ही नजरिया बदल देती हैं,कोइ महानुभाव होगा  जो इन सबसे सर्वोपरि होता हैं.बेहतरीन रचना ,मानसिक सोच को दर्शाती ,हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।

Comment by विनय कुमार on August 10, 2018 at 12:26pm

बहुत बहुत आभार आ नीलम उपाध्याय जी 

Comment by विनय कुमार on August 10, 2018 at 12:25pm

बहुत बहुत आभार आ मुहतरम समर कबीर साहब

Comment by Neelam Upadhyaya on August 9, 2018 at 4:15pm

आदरणीय विनय कुमार जी, अच्छी कहानी हुई है।  बधाई स्वीकार करें। 

Comment by Samar kabeer on August 9, 2018 at 4:00pm

जनाब विनय कुमार जी आदाब, अच्छी प्रस्तुति है, बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदाब,'नूर' साहब, सुन्दर  रचना है, मगर 'ग़ज़ल ' फार्मेट में…"
1 hour ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ अड़सठवाँ आयोजन है।.…See More
20 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"अश्रु का नेपथ्य में सत्कार भी करते रहेवाह वाह वाह ... इस मिसरे से बाहर निकल पाऊं तो ग़ज़ल पर टिप्पणी…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं

.सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं  जहाँ मक़ाम है मेरा वहाँ नहीं हूँ मैं. . ये और बात कि कल जैसी…See More
yesterday
Ravi Shukla posted a blog post

तरही ग़ज़ल

2122 2122 2122 212 मित्रवत प्रत्यक्ष सदव्यवहार भी करते रहेपीठ पीछे लोग मेरे वार भी करते रहेवो ग़लत…See More
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागा अर्थ प्रेम का है इस जग में आँसू और जुदाई आह बुरा हो कृष्ण…See More
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय नीलेश जी "समझ कम" ऐसा न कहें आप से साहित्यकारों से सदैव ही कुछ न कुछ सीखने को मिल…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय गिरिराज जी सदैव आपके स्नेह और उत्साहवर्धन को पाकर मन प्रसन्न होता है। आप बड़ो से मैं पूर्णतया…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना की विस्तृत समीक्षा के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार व्यक्त करता हूँ।…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. बृजेश जी मुझे गीतों की समझ कम है इसलिए मेरी टिप्पणी को अन्यथा न लीजियेगा.कृष्ण से पहले भी…"
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. रवि जी ,मिसरा यूँ पढ़ें .सुन ऐ रावण! तेरा बचना है मुश्किल.. अलिफ़ वस्ल से काम हो…"
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. रवि जी,ग़ज़ल तक आने और उत्साह वर्धन का धन्यवाद ..ऐ पर आपसे सहमत हूँ ..कुछ सोचता हूँ…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service