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पास रहते लोग से हम दूर कितने हो गए

2122   2122     2122     212

दूरियां नजदीकियां बन तो गयी हैं आजकल

पास रहते लोग से हम दूर कितने हो गए

 

माँ पिता सारे मरासिम गुम  हुए इस दौर में  

रोटियों के फेर में मजबूर कितने हो गए

 

भूल जाओगे मुझे तुम एक दिन मालूम था

इश्क में मेरे मगर मशहूर कितने हो गए

 

पत्थरों पर सर पटककर फायदा कोई नहीं

उसके दर पर ख्वाब चकनाचूर कितने हो गए

 

रात काली नागिनों सी डस रही है आजकल

हमनशीं थे कल तलक मगरूर कितने हो गए

 

जो चमकते चाँद से रहते सदा ही शादबां

इश्क से चूके तो वे बेनूर कितने हो गए

 

टीन के खाली कनस्तर की तरह थे बज रहे

मिल गयी कुर्सी उन्हें भरपूर कितने हो गए

 

देती है ताक़त सियासत जम्हूरियत में इस कदर 

बन गए नेता तो वे मख्मूर कितने हो गए

 

मुफलिसी में इश्क का नीरज  मज़ा कुछ और है

हाथ खाली भी मिले मसरूर  कितने हो गए

 

था कतल का काम जिनका बस चुनावों से कबल  

जीत कर वो आये हम मश्कूर कितने हो गए 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

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Comment by Neeraj Neer on June 25, 2018 at 8:55pm

हार्दिक आभार रोहित जी 

Comment by Neeraj Neer on June 25, 2018 at 8:55pm

धन्यवाद नीलम जी 

Comment by Neeraj Neer on June 25, 2018 at 8:54pm

धन्यवाद सुरेन्द्रनाथ जी 

Comment by Neeraj Neer on June 25, 2018 at 8:54pm

बहुत शुक्रिया जनाब समर साहब . कब्ल और क़त्ल पर मुझे संदेह था इसे ऐसे लिखा जा सकता है या नहीं और मुझे यहाँ उपयुक्त जवाब की तलाश भी थी. शुक्रिया जवाब के लिए .... 

Comment by नाथ सोनांचली on June 25, 2018 at 7:24pm
आद0 नीरज कुमार नीर जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कहने का आपने प्रयास किया है। ग़ज़ल में मतला होता है जो मुझे कहीं दिखाई नहीं दिया। शेष आली जनाब समर कबीर साहब की टिप्पणी पर गौर कीजियेगा। बहुत बहुत बधाई देता हूँ आपको इस प्रयास पर।।
Comment by Samar kabeer on June 25, 2018 at 2:53pm

जनाब नीरज कुमार 'नीर' जी आदाब,बहुत उम्दा अशआर हुए हैं,इसके लिए मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

मतला नज़र नहीं आया इन अशआर में?

मक़्ता अंत में होता है ?

आख़री शैर में 'कतल' ग़लत शब्द है ,सहीह शब्द है "क़त्ल",इसी तरह ऊला मिसरे में ही 'कबल' भी ग़लत शब्द है,सहीह शब्द है "क़ब्ल" देखियेगा ।

Comment by Sushil Sarna on June 25, 2018 at 2:35pm

भूल जाओगे मुझे तुम एक दिन मालूम था

इश्क में मेरे मगर मशहूर कितने हो गए

वाह क्या बात है .... बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय। हार्दिक बधाई।

Comment by Shyam Narain Verma on June 25, 2018 at 10:33am
बहुत बहुत बधाई आपको इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए सादर ।
Comment by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on June 24, 2018 at 8:54pm
Comment by Neelam Upadhyaya on June 24, 2018 at 4:35pm

आदरणीय नीरज कुमार जी, नमस्कार । बहुत ही खूबसूरत की पेशकश। मुबारकबाद कुबूल करें।

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