For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क़सीदे और क़शीदाकारी (लघुकथा)

रंग-बिरंगे मोती एकत्रित हो चुके थे। कुछ पुराने और कुछ नये। कारीगर भी थे और फ़ोटोग्राफ़र भी। शादीशुदा औरतें भी और तलाक़शुदा भी रंग-बिरंगी पोशाकों में। दीग़र ताम-झाम भी इकट्ठे कर लिए गए थे। मंत्री महोदय के पधारते ही सरकार की तारीफ़ में क़सीदे गाये जाने लगे। ख़ास काम निबटा कर मंत्री जी को वापस रवाना होना था।
"कुछ जवान कुंवारी लड़कियों और कुछ जवान तलाक़शुदा औरतों को काम पर बिठा दो!" एक कार्यकर्ता ने दूसरे से कहा।
सिर पर दुपट्टे लपेटे कुछ मुस्लिम लड़कियों और औरतों ने ताने-बाने का सामान उठाया और बैठ गईं फ्रेम के पास काम पर। शेष उन्हें घेर कर बैठ गईं।
"हां, भाई अब चार-पांच फोटो उतार लो।" एक कार्यकर्ता के कहने पर फ़ोटोग्राफ़र ने फोटो उतारे। कुछ फोटो मंत्री जी के साथ उतारे गये और फिर मंत्री जी वापस रवाना हो गए अपनी टीम के साथ। फोटो उतरवाने के बाद लड़कियां और औरतें सभी की ख़ुशी उस समय दूनी हो गई, जब उन्हें कुछ रुपए भी वितरित कर दिये गये ।
"चलो भाई, अब जा सकतीं हैं आप लोग!" कार्यकर्ता ने उन सब से कहा।
"भाई साहब, नये साल का केलैंडर हमें भी मिलेगा या नहीं!" एक जवान लड़की ने पूछ ही लिया।
"हां बिल्कुल। तुमने क़शीदाकारी की है, कलैंडर भी मिलेगा, ज़रा सब़्र करना पड़ेगा।" कार्यकर्ता के इस जवाब पर फ़ोटोग्राफ़र के मुख से निकल गया - "चुनावी क़शीदेकारी में नये साल का केलैंडर! आख़िर कब तक उल्लू बनाओगे जनता को!"
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 668

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 11, 2018 at 6:51pm

मेरी इस रचना पर पहली प्रोत्साहक टिप्पणी के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब सुरेन्द्र इंसान साहिब।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 11, 2018 at 6:49pm

 मेरी रचना पर हमेशा की तरह अन्य रचनाओं के साथ समय देकर त्वरित टिप्पणी के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब।

यह रचना पोस्ट करने से पहले इंटरनेट पर इन मिलते-जुलते शब्दों के अर्थ मैंने पहले ही समझ लिए थे। लेकिन भिन्न भिन्न वेबसाइट्स पर भिन्न /क/, /क़/ और /स/, /श/ सहित शब्द व अर्थ मिलने के कारण दुविधा में पड़ गया था। शब्दकोश नहीं है मेरे पास। 

इंटरनेट पर संबंधित ग़ज़ल (प्रशंसा हेतु) के लिए कहीं 'कशीदा'/क़शीदा, तो कहीं 'कशीदा'/क़सीदा मिल रहा था।

फिर मैंने सोचा कि फेसबुक प्रतियोगिता में पोस्ट तो कर ही दूं , क्योंकि समय सीमा समाप्त हो रही थी। आपकी टिप्पणी की ही प्रतीक्षा थी।

सो कृपया सही शीर्षक  " क़सीदे और कशीदाकारी" समझा जाये। 

Comment by Samar kabeer on March 11, 2018 at 6:31pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब आदाब,लघुकथा का प्रयास अच्छा है,लेक़िन कुछ बातें आपको बताना चाहूंगा,जैसा कि आप जानते हैं,लघुकथा में शीर्षक का ख़ास महत्व होता है,इस संदर्भ में आपकी लघुकथा का शीर्षक ठीक इसलिये नहीं कि  आप 'कशीदे' और कशीदा कारी का सही अर्थ नहीं जानते,'कशीदा' शब्द का अर्थ होता है खिंचा हुआ,रंजीदा, मलूल, और "कशीदा कारी' का अर्थ होता है 'कढ़ाई,सूई का काम',अब ये जुमला देखिये:-

'मंत्री महोदय के पधारते ही सरकार की तारीफ़ में कशीदे गये जाने लगे'

आप यहाँ जिस गान का ज़िक्र कर रहे हैं उसे "कशीदे" नहीं "क़सीदे" कहते हैं,जो उर्दू शायरी की एक विधा है,अब आप ख़ुद ग़ौर कीजिये की क्या आपका शीर्षक सही है?

वैसे कथानक उम्दा है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by surender insan on March 11, 2018 at 4:34pm

वाह एक बहुत अच्छी लघुकथा का सृजन किया है आपने । बहुत बहुत बधाई हो जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service