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ग़ज़ल

1212 1122 1212 22


कफ़स को तोड़ बहारों में आज ढल तो सही ।।
तू इस नकाब से बाहर कभी निकल तो सही ।।

तमाम उम्र गुजारी है इश्क में हमने ।
करेंगे आप हमें याद एक पल तो सही ।।

सियाह रात में आये वो चाँद भी कैसे ।
अदब के साथ ये लहज़ा ज़रा बदल तो सही ।।

बड़े लिहाज़ से पूंछा है तिश्नगी उसने ।
आना ए हुस्न पे इतरा के कुछ उबल तो सही ।।

झुकी नज़र में अदाओं पे मुस्कुरा देना ।
ऐ दिल सनम की शरारत पे कुछ मचल तो सही ।।

जमी है वर्फ़ ज़माने की खूब रिश्तों पर ।
बची हो आग तो हंसकर जरा पिघल तो सही ।।

तेरे लिए वो किताबें ग़ज़ल की लिखता है ।
असर हो दिल पे तो अपनी सुना ग़ज़ल तो सही ।।

सफर अधूरा है मंजिल अभी है दूर बहुत ।

तू थोड़ी दूर तलक मेरे साथ चल तो सही ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on January 13, 2018 at 2:04pm

अब ठीक है ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 13, 2018 at 1:59pm

आ0 कबीर सर शत शत नमन के साथ सादर आभार सुधार कर दिया ।

Comment by Samar kabeer on January 10, 2018 at 5:38pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

4थे शैर का सानी मिसरा यूँ कर लें :-

'अना-ए-हुस्न पे इतरा के कुछ उबल तो सही'

5वें शैर के ऊला में 'से' की जगह 'की' और 'में' की जगह 'पे' कर लें ।

छटे शैर में क़ाफ़िया दोष है,सही शब्द है "द्ख्ल"

7वें शैर के ऊला ने 'से' की जगह "की" कर लें ।

आख़री शैर का सानी मिसरा बह्र में नहीं है इसे यूँ कर लें :-

'तू थोड़ी दूर तलक मेरे साथ चल तो सही'

कृपया ध्यान दे...

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