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कुछ यादें बचपन की

बीत गया जो बचपन अपना, वह भी एक जमाना था
पल में हँसना पल में रोना, पल पल इक अफसाना था

बारिश में कागज की नैया, भैया रोज बनाते थे
बागों में तितली के पीछे, हमको वह दौड़ाते थे
रोने की थी वजह न कोई, हँसने के न बहाने थे
कमी नहीं थी किसी चीज की, सारे पास खजाने थे

चिन्ता फिक्र न कोई कल की, हर मौसम मस्ताना था
पल में हँसना पल में रोना, पल पल इक अफसाना था

जिधर निकलते थे हम यारों उधर दोस्त मिल जाते थे
गिल्ली डंडा और कबड्डी, फिर हम वहीं जमाते थे
चाहे जितनी चोट लगे पर, हम हँसते मुस्काते थे
हर कोई अपना साथी था, सबसे प्यार जताते थे

उनसे लड़ना और झगड़ना, फिर सबसे मिल जाना था
पल में हँसना पल में रोना, पल पल इक अफसाना था

आँसू ही थे अपने बस में, जब चाहें आ जाते थे
आँसू की दो बूँद गिराकर, सबको हम भरमाते थे
आँसू ही अपनी ताकत थी, देख सभी घबराते थे
आँसू के ही भाग्य भरोसे, जिद अपनी मनवाते थे

बचपन की ख्वाहिश में केवल, साथ सभी का पाना था
पल में हँसना पल में रोना, पल पल इक अफसाना था

संग सखा के बैठ कहीं पर, घण्टों हम गपियाते थे
हुई देर जो घर आने में, पापा से घबराते थे
मार पड़े उससे पहले ही, झट मुर्गा बन जाते थे
पास खड़ी हो मम्मी गर तो, मंद मंद मुस्काते थे

अब से गलती नहीं करेंगे, बार बार दुहराना था
पल में हँसना पल में रोना, पल पल इक अफसाना था

नकली पुलिस दरोगा बनके, अपना रौब जमाते थे
करते थे हम बहस बहुत जब, जज वकील बन जाते थे
दुल्हन सी हम ओढ़ दुपट्टा, निशदिन स्वांग रचाते थे
कभी भूत बन बड़े बड़ो के, छक्के खूब छुड़ाते थे

चोर सिपाही अगड़म बगड़म, यह सब खेल पुराना था
पल में हँसना पल में रोना, पल पल इक अफसाना था

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by रक्षिता सिंह on October 9, 2017 at 11:14pm
आँसू ही थे अपने बस में, जब चाहें आ जाते थे
आँसू की दो बूँद गिराकर, सबको हम भरमाते थे
Beautiful & really true lines.
आँसू ही अपनी ताकत थी, देख सभी घबराते थे
आँसू के ही भाग्य भरोसे, जिद अपनी मनवाते थेr

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