For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल " जिंदगी से जी भर गया कब का "

2122 1212 22

ज़िन्दगी,जी तो भर गया कब का।
टूट कर मैं बिखर गया कब का ।।

***
इक मुहब्बत का था नशा मुझको।
वो नशा भी उतर गया कब का।।
***
चाहता था तुझे दिल-ओ-जां से।
वक़्त वो तो गुज़र गया कब का।।

***
देख हालत नशे के मारों की।
ख़ुद-ब-ख़ुद वो सुधर गया कब का।।

***
देख कर छल फ़रेब दुनिया के।
एक "इंसान" मर गया कब का।।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 717

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by surender insan on August 20, 2017 at 8:26pm
जी आदरणीय गुरप्रीत जी बेहद शुक्रिया जी। सादर नमन सँग आभार जी।
Comment by surender insan on August 20, 2017 at 8:16pm
आदरणीय नीरज जी बेहद शुक्रिया जी आपका। जी सही कहा जी आदरणीय समर साहब की सलाह हमेशा उम्दा होती है जी। सादर जी।
Comment by surender insan on August 20, 2017 at 8:05pm
जी बेहद शुक्रिया आद. ब्रजेश कुमार जी। सादर नमन जी।
Comment by surender insan on August 20, 2017 at 8:04pm
जी आदरणीय गिरिराज भंडारी भाई जी बेहद शुक्रिया जी। आदरणीय समर कबीर साहब की सलाह अनुसार मिसरा सही करता हु जी। बहुत बहुत आभार जी।
Comment by surender insan on August 20, 2017 at 8:01pm
जी आदरणीय समर कबीर साहब जी आपके सुझाव के अनुसार मिसरा सही करता हूँ जी। सादर नमन सँग आभार जी आपका।
Comment by surender insan on August 20, 2017 at 7:57pm
जी आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी बेहद शुक्रिया जी आपका। सादर नमन सँग आभार जी।
Comment by surender insan on August 20, 2017 at 7:56pm
जी बेहद शुक्रिया आपका आदरणीय रवि शुक्ला जी। सादार नमन सँग आभार जी। जी।
Comment by surender insan on August 20, 2017 at 7:54pm
जी बेहद शुक्रिया आपका आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ साहब जी।सादर नमन सँग आभार जी।
Comment by Gurpreet Singh jammu on August 14, 2017 at 12:27pm

आदरणीय सुरेंद्र इंसां जी,,बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने,,,मकता विशेष तौर पर बेहद पसंद आया 

Comment by Niraj Kumar on August 13, 2017 at 4:54pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी,

उम्दा ग़ज़ल हुयी है दाद के साथ मुबारकबाद.

और उतनी ही उम्दा है जनाब समर कबीर साहब की इस्लाह.

सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted discussions
1 hour ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service