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अँधेरे ...

अँधेरे ...

किसने
स्वर दे दिए
रजनी तुम्हें
तुम तो
वाणीहीन थी
मूक तम को
किसने स्वरदान दे दिया
शून्यता को बींधते हुए
कुछ स्वर तो हैं
मगर
अस्पष्ट से
क्षण
तम के परिधान में
सुप्त से प्रतीत होते हैं
भाव
एकांत के दास हैं
शायद
तुम
इस तम की
वाणीहीनता का कारण हो
पर हाँ
ये भी सच है कि
तुम ही इस का
निवारण भी हो
दे दो प्राण
इन एकांत
अँधेरे को
छू लो इन्हें
अपने
अधरों से
ताकि ये अँधेरे
भावनाओं के परिधान में लिपटे
उजालों को जी सकें

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on May 23, 2017 at 1:32pm
आदरणीय विजय निकोर साहिब रचना के भावों को अपनी मधुर प्रशंसा से अलंकृत करने का हार्दिक आभार।
Comment by vijay nikore on May 23, 2017 at 3:09am

इस अच्छी रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील जी

Comment by Sushil Sarna on May 19, 2017 at 9:08pm

आदरणीय    narendrasinh chauhan जी  सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on May 19, 2017 at 9:07pm

आदरणीय समर कबीर साहिब सृजन के भावों को अपनी स्वीकृति देती प्रशंसा से अलंकृत करने का हार्दिक आभार। 

Comment by narendrasinh chauhan on May 19, 2017 at 5:25pm

खूब सुन्दर रचना 

Comment by Samar kabeer on May 18, 2017 at 10:00pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,हमेशा की तरह एक अच्छी कविता से नवाज़ा आपने मंच को,इस बहतरीन प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

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