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मुक्तिका: ज़ख्म कुरेदेंगे.... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

ज़ख्म कुरेदेंगे....

संजीव 'सलिल'
*
*
ज़ख्म कुरेदेंगे तो पीर सघन होगी.
शोले हैं तो उनके साथ अगन होगी..

छिपे हुए को बाहर लाकर क्या होगा?
रहा छिपा तो पीछे कहीं लगन होगी..

मत उधेड़-बुन को लादो, फुर्सत ओढ़ो.
होंगे बर्तन चार अगर खन-खन होगी..

फूलों के शूलों को हँसकर सहन करो.
वरना भ्रमरों के हाथों में गन होगी..

बीत गया जो रीत गया उसको भूलो.
कब्र न खोदो, कोई याद दफन होगी..

आज हमेशा कल को लेकर आता है.
स्वीकारो वरना कल से अनबन होगी..

नेह नर्मदा 'सलिल' हमेशा बहने दो.
अगर रुकी तो मलिन और उन्मन होगी..

*************************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
Acharya Sanjiv Salil

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 5, 2010 at 5:55pm
ज़ख्म कुरेदेंगे तो पीर सघन होगी.
शोले हैं तो उनके साथ अगन होगी..

मत उधेड़-बुन को लादो, फुर्सत ओढ़ो.
होंगे बर्तन चार अगर खन-खन होगी..

Waah Acharya waah , aap sabkey saujanya sey etani khubsurat rachnao ko padhney ko mil raha hai, bahut badhiya rachna, jai hoooooooo
Comment by sanjiv verma 'salil' on July 2, 2010 at 10:49pm
धन्यवाद

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on July 2, 2010 at 2:30pm
वाह वाह आचार्य जी बहुत ही लाजवाब रचना कही है आपने ! इसको पढते हुए इसमें से किसी सुंदर सी गजल की सुगंध महसूस हुई मुझे ! यूँ तो हरेक पंक्ति ही बहुत प्रभावशाली है, लेकिन निम्नलिखित पंक्तियाँ सीधे दिल में उतर गईं:

//ज़ख्म कुरेदेंगे तो पीर सघन होगी.
शोले हैं तो उनके साथ अगन होगी..//
//बीत गया जो रीत गया उसको भूलो.
कब्र न खोदो, कोई याद दफन होगी.//.

मेरा सादर साधुवाद स्वीकार करें !

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