For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो पीपल का पेड़

वो पीपल का पेड़ था । सड़क के किनारे - फुटपाथ से लगा - सालो से खड़ा । उस सड़क के इस पार बस स्टैण्ड है । सुबह दफ्तर जाने के लिए इसी बस स्टैण्ड से बस लेती रही हूँ । दफ्तर ही क्यों शहर के किसी भी हिस्से में जाना हो तो बस लेने के लिए यही सबसे नजदीक का बस स्टैण्ड है । पिछले तेइस वर्षों से यही रुटीन है - सुबह साढ़े आठ बजे से पौने नौ बजे के बीच यहाँ पहुँचना होता है ताकि ठीक समय पर बस लेकर ठीक समय पर दफ्तर पहुँचा जा सके । मेरी ही तरह और भी हैं जो उसी समय पर उसी बस में सवार होते हैं । जब तक बस आए, अभिवादन के साथ कुछ हल्की फुल्की बात हो जाया करती । बाकी लोग दूसरी बसों में भी सवार हुआ करते क्योंकि उन्हें अलग-अलग जगहों पर जाना जो होता ।

सालों तक इस रुटीन में पीपल के पेड़ की कुछ खास भूमिका नहीं रही सिवाए इसके कि कभी-कभी जब बस के इंतजार में खड़े गर्म मौसम की मार झेल रहे होते तो थोड़ी बहुत हवा आती जो कुछ राहत दे जाया करती । वर्ना सड़क के इस पार बस स्टैण्ड पर खड़े होकर ना तो इसकी छाया की ठण्ढक ही मिल पाती और ना ही बरसात में ही इसके नीचे खड़े होकर बारिश से बचने का सुख उठा पाते क्योंकि यह सड़क के उस पर जो था और इस पार से उस पर जाने के लिए बीच में ऊँचा सा " डिवाइडर" पर करना पड़ता सो सभी सड़क के इस पार ही बस स्टैण्ड के छोटे से शेड में खड़े रहकर ही बसों का इंतजार किया करते । हाँ यह जरूर होता कि सर्दियों के मौसम में जब स्टैण्ड पर खड़े थोड़ी धूप की तलाश कर रहे होते तब उस समय इस पीपल की छाया बडी हुआ करती और सड़क के इस पार तक धूप को आने से रोका करती ।

फिर अनायास ही पीपल के पेड़ की उपयोगिता निकल आई । घर से निकाली हुई देवी-देवताओं की पुरानी टूटी-फूटी मूर्तियाँ को लोग पेड़ की जड़ में रख जाया करने लगे । कभी-कभार कोई इसकी जड़ में जल चढ़ा जाता और कभी कभार अगरबत्ती या दीपक भी जला जाता । फिर एक दिन देखा - फुट पाथ के किनारे बड़े-बड़े पाँच घड़े रख दिए गए थे -पानी से भर कर । सड़क से गुजरने वाले पैदल, साइकिल सवार, आटो चालक यहाँ रुकते, घड़े से पानी निकालते, पीते और आगे बढ़ जाते । यह सब देख कर थोड़ा सुकून मिलता - चलो यहाँ एक प्याऊ तो है - गर्मी से बेहाल सड़क चलतों के लिए कम से कम कुछ तो राहत है । कुछ दिनो बाद देखा कि पेड़ की जड़ के पास, पेड़ के चारों तरफ घेरा बनाते हुए एक चबूतरा जैसा बना दिया गया साथ ही पानी वाले घड़ो को रखने के लिए एक छोटी सी कोठरी भी बना दी गई और सारे घड़े इस कोठरी में रख दिए गए । किसने यह सब किया, ये जानने या पता करने की न तो किसी न जरूरत समझी और ना किसी के पास इतना समय ही था कि यह सब पता करता । समय ऐसे ही बीतता रहा ।

थोडे़ दिनों में प्याऊ वाली कोठरी से लगी एक और कोठरी बन गई । उसमें एक प्याऊ वाला आकर रहने लगा जो पानी के घड़ों की देख-भाल करता - उन्हें धोता और पास के नल से पानी लाकर उन्हें भरता । यहाँ तक तो सब ठीक था । कुछ दिनों में उस कोठरी के बाहर ३-४ बच्चे खेलते दिखने लग गए और कोठी के अन्दर एक दुबली-पतली सी औरत भी दिखने लग गई जो छोटे-कामों में व्यस्त दिखती । पता चला वो प्याऊ वाले का परिवार है । इसके कुछ दिनों बाद ये परिवार वहाँ दिखना बन्द हो गया । बस स्टैण्ड पर रोज मिलने वाले एक दिन चर्चा कर रहे थे कि वो दुबली-पतली सी दिखने वाली औरत प्याऊ वाले कि पत्नी थी, कि उसे क्षय रोग था, कि वो अपने गाँव गई थी, कि बीमारी की वजह से वहीं उसकी मौत हो गई, कि अब प्याऊ वाला भी गाँव चला गया है - बच्चों को लेकर, कि अब वो वापस नहीं आएगा -वगैरह-वगैरह ।

वो पीपल का पेड़ वहाँ वैसे ही खड़ा रहा । आने-जाने वाले वहाँ से वैसे ही पहले की तरह आते-जाते रहे । लेकिन अब वहाँ प्याऊ नहीं रहा । हाँ, ये जरूर हुआ कि अब पीपल के पेड़ की जड़ के ऊपर जो चबूतरा बन गया था उस पर देवी-देवताओं की कुछ अच्छी हालत वाली मूर्तियाँ दीखने लग गईं । उन मूर्तियों के ठीक ऊपर पेड़ की टहनी से एक घण्टी बाँध कर टाँग दी गई । पेड़ की छाँव में एक व्यक्ति कुछ पोथीनुमा किताबें लेकर बैठा दिखने लगा । कभी-कभी दिन में उधार से गुजरते हुए देखती कि वह किसी को उन पोथियों में से देख कर कुछ समझा रहा होता । धीरे-धीरे पीपल के नीचे रखी मूर्तियों पर रोज फूल माला चढ़ने लग गई, धूप-दीप रोज जलाए जाने लगे - यदा-कदा लोग वहाँ प्रसाद चढ़ाने के लिए खड़े दिखने लग गए - मूर्तियों के अगल-बगल से दीवार उठा कर छोट-मोटे मन्दिर की सेरचना खड़ी कर दी गई - उन संरचनाओं में से एक में शनिदेव की मूर्ति रख दी गई । दूसरी तरफ साईं बाबा की मूर्ती भी रख दी गई - पेड़ के आगे लगभग दस मीटर तक की जगह को पक्का सीमेंटेड कर दिया गया और उसके ऊपर चार लोहे के पतले पाइपों के सहाने टिकी चादर वाली छत भी लगा दी गई । सबसे मजेदार बात यह कि इस मंदिरनुमा संरचना के द्वार पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिख दिया गया है - "'शनि देव का प्राचिन मंदिर ।" वो पोथी लेकर बैठने वाला व्यक्ति वहाँ का पुजारी बन बैठा ।

पेड़ तो वो अब भी है । इसमें कोई दो राय नहीं । पर अब उसकी हैसियत बदल गई है । अब वहाँ हर दिन फुटपाथ से लगा कर दूर तक गाड़ियाँ पार्क की जाती हैं । लोग वहाँ उतरते हैं । "'शनि देव के प्राचिन मंदिर" में जाते हैं । मंदिर में लम्बी सी लाइन लग जाती है । घण्टों खड़े रहने के बाद दर्शन करने और प्रसाद चढ़ाने का नम्बर आता है । सड़क के किनारे दूर तक पार्क की हुई गाड़ियों की वजह से हर समय जाम सा लगा रहता है । जो जाम में फँसे रहते हैं इस तथाकथित मंदिर पर लोगों की श्रद्धा को कोसते हुए परेशान होते रहते हैं । प्रशासन इन सब बातों से बेखबर है । लोग परेशान हैं तो उसकी बला से ।

Views: 496

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Admin on July 6, 2010 at 3:35pm
नीलम बहन बहुत ही अच्छा लेख आपने लिखा है, कमोबेश इस तरह का अतिक्रमण आपको हर शहर मे दिख जायेगा, अतिक्रमण करने वाले को बैठे बिठाये खाने का जुगाड़ हो जाता है और साथ मे रहने का भी, शुरू शुरू मे एक फुंसी से शुरू हुआ यह खेल कब नासूर बन जाता है पता ही नहीं चलता, मंदिर , देवी , देवता, पीर बाबा के नाम पर अतिक्रमण का खेल बदस्तूर जारी है, कोई बोलने वाला नहीं है,
Comment by aleem azmi on July 6, 2010 at 12:37pm
bahut sunder lekh likha hai aapne neelam .....likhte rahiye

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, नए अंदाज़ की ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।"
56 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके संकल्प और आपकी सहमति का स्वागत है, आदरणीय रवि भाईजी.  ओबीओ अपने पुराने वरिष्ठ सदस्यों की…"
58 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपका साहित्यिक नजरिया, आदरणीय नीलेश जी, अत्यंत उदार है. आपके संकल्प का मैं अनुमोदन करता हूँ. मैं…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"जी, आदरणीय अशोक भाईजी अशोभनीय नहीं, ऐसे संवादों के लिए घिनौना शब्द सही होगा. "
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . उल्फत
"आदरणीय सुशील सरना जी, इन दोहों के लिए हार्दिक बधाई.  आपने इश्क के दरिया में जोरदार छलांग लगायी…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"माननीय मंच एवं आदरणीय टीम प्रबंधन आदाब।  विगत तरही मुशायरा के दूसरे दिन निजी कारणों से यद्यपि…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा षष्ठक. . . . आतंक
"आप पहले दोहे के विषम चरण को दुरुस्त कर लें, आदरणीय सुशील सरना जी.   "
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"आप वस्तुतः एक बहुत ही साहसी कथाकार हैं, आ० उस्मानी जी. "
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"आदरणीया विभा रानी जी, प्रस्तुति में पंक्चुएशन को और साधा जाना चाहिए था. इस कारण संप्रेषणीयता तनिक…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"सादर नमस्कार आदरणीय सर जी। हमारा सौभाग्य है कि आप गोष्ठी में उपस्थित हो कर हमें समय दे सके। रचना…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रस्तुति नम कर गयी. रक्तपिपासु या हैवान या राक्षस कोई अन्य प्रजाति के नहीं…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"घटनाक्रम तनिक खिंचा हुआ प्रतीत तो हो रहा है, लेकिन संवादों का प्रवाह रुचिकर है, आदरणीय शेख शहज़ाद…"
2 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service