For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल...बे-रंग-ओ-बू है ये ज़िंदगानी

121 22 121 22 121 22 121 22
बशर परेशां दरकतीं राहें पहाड़ सी ज़िन्दगी हुई है
कदम जहाँ सकपका के रक्खा वहीँ ज़मीं दलदली हुई है

बे-रंग-ओ-बू है ये ज़िंदगानी हँसी सा कोई मक़ाम दे दो
कि ये उदासी मेरे लवों पे कई दिनों से बसी हुई है

जिन्हें संभाला जिन्हें सँवारा वो ख्वाब जाने क्यों रूठ बैठे
सुबह से पलकों पे ओस आई औ आँख भी शबनमी हुई है

कफ़स से तो हम निकाल लाये मगर छुपाया ज़माने भर से
कि शूल बन कर वही सदा अब ह्रदय के अन्दर चुभी हुई है

अज़ब तमाशा है तेरा मौला क्या खूब तेरी है रहनुमाई
वहीँ वहीँ पे गिरी बिजुरिया जहाँ जरा रौशनी हुई है

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 1076

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 8, 2017 at 10:08pm
Delete Comment
एक बात और जानना चाहता हूँ..आदरणीय मिथिलेश जी आदरणीय समर कबीर जी एवं आदरणीय गिरिराज जी..'दरकतीं'शब्द का मात्रा भार क्या होगा?मैंने यहाँ 122 लिया है..लेकिन मेरे जानने वाले एक अग्रज ने मुझे बताया की इसका मात्रा भर 212 होगा..
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 8, 2017 at 10:00pm
जी आदरणीय मिथिलेश जी क्यों न इसे 'हसीन कोई मक़ाम दे दो' कर दिया जाये..

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 8, 2017 at 9:52pm

बे-रंग-ओ-बू है ये ज़िंदगानी हँसी (नहीं हसीं हसीन वाला)सा कोई मक़ाम दे दो

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 8, 2017 at 2:19pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सुन्दर एवं मनोहारी शब्दों में उत्साहवर्धन और रचना पटल पे आपकी गरिमामई उपस्थिति के लिए आपको शत शत नमन...आपने जो बात शुरू की है उससे निश्चय ही बहुत कुछ सीखने को मिलेगा..

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 8, 2017 at 11:32am

आदरणीय समर भाई ... आपको याद होगा एक बार फोन मे चर्चा किया था कि , वाब ए अत्फ और इज़ाफत की मात्रा लेने के नियम एक बार मंच मे ज़रूअर साझा कीजियेगा -- अभी ऐसा वक़्त आया लगता है -- जिस न्ज़्म की बात मै कर रहा था --

आदरणीय  वो ये है
12  12     12    12

ज़रा सुनो तो शेख़ जी

12    12      12   12

तुम्हारा नुक़्ता ए नज़र      --  यहाँ      ता की मात्रा गिरा भी गई है और  हर्फे इज़ाफत  ए  की मात्रा उठाई भी गई है

1212        12   12 

दुरुस्त हो तो हो मगर

12  12      12   12

अभी तो मै जवान हूँ 

आदरणीय  समर भाई जी अगर संभव हो तो  एक नियम के रूप मे प्रतिक्रिया देने की कृपा करें , ताकि भविष्य मे सदस्य इसका लाभ ले सकें .... सादर ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 8, 2017 at 11:24am

आदरनीय बृजेश भाई , कठिन बहर मे खूब सूरत ग़ज़ल कही है आपने , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 8, 2017 at 9:02am
रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोरे जी...
Comment by vijay nikore on January 7, 2017 at 9:58pm

 गज़ल अच्छी लगी... ख्याल बेहतरीन हैं,  बस आप लिखते जाईए। दिल से बधाई।

प्रतिक्रियाओं से सीखने को भी बहुत मिला।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 6, 2017 at 10:00pm
जी आदरणीय समर कबीर जी कोशिश तो यही होती है...
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 6, 2017 at 9:57pm
हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार आदरणीय महेंद्र कुमार जी ..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
19 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service