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इश्क छुपता नहीं छुपाने से -बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'

अरकान – 2122  12  12  22

 

कुछ भी मिलता न सच बताने से |

फिर तो हम क्यों कहें ज़माने से|  

 

कोशिशें लाख हमने की लेकिन,

इश्क छुपता नहीं छुपाने से|

 

कहकहे उनके गूंजते हरज़ा,

हम तो डरते हैं मुस्कुराने से

 

लाख सोचा कि भूल जाऊँ पर,

याद आते हो तुम भुलाने से|

 

मिन्नतें मैंने लाख की लेकिन

क्या मिला मुझको सर झुकाने से

 

या ख़ुदा कुछ न पा सका ‘मिंटू’

रायगाँ ज़िन्दगी गँवाने से |

 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on December 3, 2016 at 6:06pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी साहेब ......आपका परामर्श सर आँखों पे ...........नमन व शुक्रिया आपका |

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on December 3, 2016 at 6:03pm

आदरणीया निधि जी .............नमन व शुक्रिया 


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Comment by गिरिराज भंडारी on December 2, 2016 at 10:24am

आदरणीय बैज नाथ भाई , गज़ल अच्छी हुई है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें । दो एक सुधार , अगर अछा लगे तो स्वीकार करें --

कुछ भी मिलता न सच बताने से |

फिर तो हम क्यों कहें ज़माने से|          --  हम कहें भी  तो क्या  ज़माने से
और -

या ख़ुदा कुछ न पा सका ‘मिंटू’

रायगाँ ज़िन्दगी गँवाने से |    ---   क्या मिला जिन्दगी गवाने से 

Comment by Nidhi Agrawal on November 30, 2016 at 11:42am

सुपर्ब ग़ज़ल हुई आदरणीय बैजनाथ जी .. याद आते हो तुम भुलाने से 

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