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देखिये साहिब मेरा तो घर शिवाला हो गया (ग़ज़ल 'राज ')

२१२२ २१२२ २१२२ २१२

मेरी बगिया खिल उठी मौसम निराला हो गया

आ गई  बेटी मेरे घर में उजाला हो गया

 

दीप खुशियों के जले शुभ शंख मानो बज उठे

देखिये साहिब मेरा तो घर शिवाला हो गया

 

लहलहाई यूँ फसल खेतों की मेरी देखिये

सोने चाँदी से मढ़ा इक इक निवाला हो गया 

 

बिन सुरा सागर के जैसे खाली था मेरा वजूद   

आते ही उसके लबालब ये पियाला  हो गया

 

पढ़ते पढ़ते रात दिन आँखें मेरी थकती नहीं

उसका चेह्रा खूबसूरत इक रिसाला हो गया

 

छोड़ बाबुल की गली को एक दिन वो जायेगी

सोचकर मेरे अभी से दिल पे छाला हो गया

 

उसकी जानिब गर बुरी आँखें उठें तो खींच ले 

ऐसा कातिल अब मेरी आँखों में जाला हो गया

---------------मौलिक एवं अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 7, 2016 at 4:09pm

आद० सौरभ  जी ग़ज़ल पर शिरकत और सराहना दोनों के लिए दिल से आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 7, 2016 at 4:07pm

आद० तेजवीर सिंह जी आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ | खेद है प्रतिउत्तर देने में विलम्ब हुआ बाहर गई हुई थी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 7, 2016 at 4:06pm

आद० समर भाई जी ,मैंने डॉ० कमर साहब को भेज दी थी उन्होंने किसी नशिस्त में फिर सुनाई थी मेरे नाम का हवाला देके . 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 25, 2016 at 9:49pm

वाह ! अच्छी ग़ज़ल केलिए बधाइयाँ ..  

लेकिन, मतले के बाद वाला शेर कुछ बोल नहीं रहा बस ऐलान कर रहा है. कारण भी तो हो. :-))

पढ़ते पढ़ते रात दिन आँखें मेरी थकती नहीं

उसका चेह्रा खूबसूरत इक रिसाला हो गया............. वाह वाह ! 

ग़ज़ल अच्छी है.

 

Comment by TEJ VEER SINGH on October 25, 2016 at 9:10pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राजेश कुमारी जी ।सुन्दर गज़ल ।

Comment by Samar kabeer on October 25, 2016 at 9:03pm
बहना आपने ये ख़ूबसूरत ग़ज़ल डॉ. क़मर साहिब को भेजी या नहीं ?

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 25, 2016 at 8:30pm

आद० गिरिराज जी ,आपका तहे दिल से शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 25, 2016 at 8:29pm

आद० रामबली जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका दिल से बहुत बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 25, 2016 at 8:28pm

आद० विजय निकोर जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया दिल से शुक्रिया आपका .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 25, 2016 at 10:10am

आदरनीया राजेश जी , खूबसूरत ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

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