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ग़ज़ल(शबाब पहने हुए )

फाइलातुन-मफाइलुन-फइलुन

कमसिनी में शबाब पहने हुए |
हुस्न निकला निक़ाब पहने हुए |

तुहमते बेवफ़ाई का कब से
हम हैं बैठे खिताब पहने हुए |

कौन आया है चीखी तारीकी
बज़्म में माहताब पहने हुए |

आँख में इंतज़ार दिल में तड़प
मैं हूँ यह इंक़लाब पहने हुए|

मत यक़ीं करना उसपे आया है
जो वफ़ा का हिजाब पहने हुए |

सामना अस्ल का ज़रूरी है
क्यूँ हैं आँखों में ख्वाब पहने हुए |

किस की तस्दीक़ आई है शामत
आए हैं वह इताब पहने हुए |

इताब-----गुस्सा

( मौलिक वअप्रकाशित )

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Comment by गिरिराज भंडारी on October 23, 2016 at 2:17pm

आदरणीय तस्दीक भाई , बेहतरीन गज़ल कही आपने , हर शेर बहुत खूब कहे हैं , दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 22, 2016 at 12:53pm

 मोहतरम जनाब सुनील प्रसाद   साहिब , ग़ज़ल में शिरकत  और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी  ---

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 22, 2016 at 12:52pm

 मोहतरम जनाब शिज्जु शकूर  साहिब , ग़ज़ल में शिरकत  और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी  ---

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 22, 2016 at 12:51pm

जनाब ब्रजेश कुमार साहिब , ग़ज़ल में शिरकत  और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on October 22, 2016 at 11:27am
बेहद खूबसूरत असआर जनाब दाद है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 22, 2016 at 10:50am

बहुत सुंदर ग़ज़ल है जनाब तस्दीक़ अहमद साहब दाद ओ मुबारक़बाद कुबूल फरमाएँ

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 22, 2016 at 10:29am
वाह बहुत खूबसूरत रचना...हार्दिक बधाई

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