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पथ पे शूल बहुत बिखरे है
पग को रखना सम्हल - सम्हल
जीवन में गम बहुत पड़े है
खिल के हंसना मचल -मचल

अब रात बहुत ही काली है
संघर्षो की इक थाली है
कठिन नहीं कुछ भी जग में,
नभ तक जाना सरल - सरल

हे युवा आज मत घबराओ
कुछ देश में एसा कर जाओ
तेरे अतुलित बल से थल पे,
खिल जायेगा कमल - कमल
……………………………
मौलिक तथा अप्रकासित
कवि हिमांशु पाण्डेय

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Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 15, 2016 at 8:18pm
आदरणीय हिमांशु जी सुन्दर गीत रचना के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है । सादर ।

कृपया ध्यान दे...

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