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ग़ज़ल ( करम की नज़र कहाँ )

ग़ज़ल
---------
(मफऊल -फाइलात -मफ़ाईल -फाइलुन )

सबको पता है तुझको मेरे दिल ख़बर कहाँ ।
वह डालते हैं सब पे करम की नज़र कहाँ ।

जैसे ही सामना हुआ मेरे हबीब से
बदली में छुप गया है न जाने क़मर कहाँ ।

हातिम की बात हर कोई करता तो है मगर
आता है उसके जैसा नज़र अब बशर कहाँ ।

खाते हैं संग कूचे से जाते नहीं कहीं
होता है इश्क़ वालों को दुनिया का डर कहाँ

जो दो क़दम भी साथ मेरे चल नहीं सका
वह दे सकेगा साथ मेरा उम्र भर कहाँ

मेरे जुनूने इश्क़ की है दास्ताँ यही
चौखट कहाँ है यार की और मेरा सर कहाँ ।

कर इस जगह से कूच ये मंज़िल नहीं तेरी
तस्दीक़ तेरा ख़त्म हुआ है सफर कहाँ ।

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by Samar kabeer on September 12, 2016 at 3:00pm
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,बहुत उम्दा और मुरस्सा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 12, 2016 at 8:47am
अच्छी ग़ज़ल हुई जनाब तस्दीक़ अहमद साहब

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