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ग़ज़ल ( करम की नज़र कहाँ )

ग़ज़ल
---------
(मफऊल -फाइलात -मफ़ाईल -फाइलुन )

सबको पता है तुझको मेरे दिल ख़बर कहाँ ।
वह डालते हैं सब पे करम की नज़र कहाँ ।

जैसे ही सामना हुआ मेरे हबीब से
बदली में छुप गया है न जाने क़मर कहाँ ।

हातिम की बात हर कोई करता तो है मगर
आता है उसके जैसा नज़र अब बशर कहाँ ।

खाते हैं संग कूचे से जाते नहीं कहीं
होता है इश्क़ वालों को दुनिया का डर कहाँ

जो दो क़दम भी साथ मेरे चल नहीं सका
वह दे सकेगा साथ मेरा उम्र भर कहाँ

मेरे जुनूने इश्क़ की है दास्ताँ यही
चौखट कहाँ है यार की और मेरा सर कहाँ ।

कर इस जगह से कूच ये मंज़िल नहीं तेरी
तस्दीक़ तेरा ख़त्म हुआ है सफर कहाँ ।

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 14, 2016 at 7:31pm

मोहतरम जनाब सुरेश कुमार  साहिब , ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 14, 2016 at 7:30pm

मोहतरम जनाब सुनील प्रसाद साहिब , ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया 

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 14, 2016 at 7:20pm
आदरणीय तसदीक अहमद साहब बहुत ही सुन्दर गजल के लिए हार्दिक बधाइयाँ कबूल फरमाएं।
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on September 14, 2016 at 3:23pm
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल माननीय।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 12, 2016 at 10:47pm

मोहतरम जनाब सौरभ साहिब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया ,महरबानी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 12, 2016 at 8:58pm

रवायती अंदाज़ और इस मिजाज़ का एक अलग ही सुरूर हुआ करता है ! एक अच्छी  ग़ज़ल के लिए दिली दाद कुबूल फ़रमायें आदरणीय तस्दीक साहब

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 12, 2016 at 8:10pm

मोहतरम जनाब  सुशील  सरना   साहिब  , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 12, 2016 at 8:09pm

मोहतरम जनाब  समर कबीर  साहिब आदाब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 12, 2016 at 7:59pm

मोहतरम जनाब शकूर साहिब आदाब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---

Comment by Sushil Sarna on September 12, 2016 at 5:14pm

खाते हैं संग कूचे से जाते नहीं कहीं
होता है इश्क़ वालों को दुनिया का डर कहाँ
जो दो क़दम भी साथ मेरे चल नहीं सका
वह दे सकेगा साथ मेरा उम्र भर कहाँ
बहुत खूब आदरणीय तस्दीक साहिब .... बहुत ही खूबसूरत अशआर कहे हैं अपने ... इस खूबसूरत प्रस्तुति के लिए दिल से मुबारक कबूल फरमाएं सर।

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