For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तन्हा रह जाता है ....

तन्हा रह जाता है ....

कल की तरह
ये आज भी गुजर जाएगा
स्मृतियों की कोठरी में
फिर कुछ और पल समेट जाएगा
हर कल के साथ
अपने अस्तित्व की शिला से
अपने अमिट होने का
दम्भ को पुष्ट करता रहेगा
हर कल का सूरज
अस्त्तित्वहीन होकर
किसी कल के गर्भ में
लुप्त हो जाएगा
क्या है जीवन
वो
जो गुजर गया
या वो
जो आज है
या फिर वो
जो आने वाले
काल के गर्भ में
सांसें ले रहा है
हर रोज़
इक मैं जन्म लेता है
हर बीते कल में
इक मैं का इज़ाफ़ा हो जाता है
लम्हा लम्हा
न जाने कब
मैं का अस्तितिव
कल के काल में समा जाता है
आज फिर आगे बढ़ जाता है
कल
अपने अस्तितिव की गठरी लिए
ज़िन्दगी की परछाई बन
तन्हा रह जाता है

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 444

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on September 6, 2016 at 1:30pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी प्रस्तुति पर अपना अमूल्य समय और सुझाव देने का तहे दिल से शुक्रिया। आपकी प्रतिक्रिया हर रचना को उत्साहित करती है।  आप जैसे गुणीजनों का सानिध्य मेरे लिए सौभाग्य की बात है। सर आपके द्वारा दिया सुझाव सुंदर है लेकिन मैं अपने सृजन में जिस शाब्दिक भाव को समेटने की कोशिश की है उसमें मुझे यथा स्थिति अधिक सही लगती है। आपके अमूल्य सुझाव का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2016 at 10:31am

आदरणीय , जीवन क्रम बयाँ करती आपको चिंतन के लिये हार्दिक बधाई । मै भी व्याकरण का बहुत जानकार नहीं हूँ पर शायद --
फिर कुछ और पल समेट जाएगा    -- सिमट जायेगा , या समेटा जायेगा , सही लगेगा ।

अपने अमिट होने का  --- होने के दम्भ को पुष्ट करता रहेगा  -- देखियेगा , अगर सही लगे तो ?

Comment by Sushil Sarna on September 4, 2016 at 11:26am

आदरणीया प्रतिभा जी प्रस्तुति में निहित भावों पर आपकी मुक्त कंठ प्रशंसा से रचना उपकृत हुई।  आपके इस स्नेह का दिल  से आभार। 

Comment by pratibha pande on September 3, 2016 at 9:27pm

मैं का अस्तितिव 
कल के काल में समा जाता है 
आज फिर आगे बढ़ जाता है 
कल 
अपने अस्तितिव की गठरी लिए 
ज़िन्दगी की परछाई बन 
तन्हा रह जाता है.....वाह ...बहुत   सुन्दर    समय के आने जाने बीत जाने को बहूत सुन्दर शब्दों में बाधा है आपने   हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीय सुशील सरना जी  

Comment by Sushil Sarna on September 3, 2016 at 6:37pm

आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्तुति के भावों को अपनी स्नेहाशीष से जीवन्त करने के लिए हार्दिक आभार। 

Comment by Samar kabeer on September 3, 2016 at 3:14pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,ये कविता भी बहुत ख़ूब है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कभी इधर है कभी उधर है भाती कभी न एक डगर है इसने कब किसकी है मानी क्या सखि साजन? नहीं जवानी __ खींच-…"
49 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय तमाम जी, आपने भी सर्वथा उचित बातें कीं। मैं अवश्य ही साहित्य को और अच्छे ढंग से पढ़ने का…"
4 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय सौरभ जी सह सम्मान मैं यह कहना चाहूँगा की आपको साहित्य को और अच्छे से पढ़ने और समझने की…"
6 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कह मुकरियाँ .... जीवन तो है अजब पहेली सपनों से ये हरदम खेली इसको कोई समझ न पाया ऐ सखि साजन? ना सखि…"
7 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"मुकरियाँ +++++++++ (१ ) जीवन में उलझन ही उलझन। दिखता नहीं कहीं अपनापन॥ गया तभी से है सूनापन। क्या…"
12 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"  कह मुकरियां :       (1) क्या बढ़िया सुकून मिलता था शायद  वो  मिजाज…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"रात दिवस केवल भरमाए। सपनों में भी खूब सताए। उसके कारण पीड़ित मन। क्या सखि साजन! नहीं उलझन। सोच समझ…"
20 hours ago
Aazi Tamaam posted blog posts
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
Thursday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service