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क्या पता था इश्क़ मे ये हादसा हो जाएगा

क्या पता था इश्क़ मे ये हादसा हो जाएगा

वो वफ़ा की बात करके बेवफ़ा हो जाएगा

 

रास्ता पुरख़ार है या मौसमे गुल से भरा

जब भी निकलोगे सफ़र में सब पता हो जाएगा

 

रफ़्ता रफ़्ता ज़िंदगी भी बेवफ़ा हो जाएगी

रफ़्ता रफ़्ता इस जहां में सब फ़ना हो जाएगा

 

धड़कनें पूछेंगी ख़ुद से बेक़रारी का सबब

दो दिलों के दरमियाँ जब फ़ासला हो जाएगा

 

कौन किसका साथ देता है यहाँ पे उम्र भर

शाम तक तेरा ये साया भी जुदा हो जाएगा

 

अपने बारे मे सभी से पूछते रहते हो क्यूँ

अपना ही किरदार इक दिन आईना हो जाएगा

 

कौन 'सूरज' है पराया कौन अपना है यहाँ

ओढ़ लो थोड़ा सा ग़म तो सब पता हो जाएगा

 

डॉ॰ सूर्या बाली 'सूरज'

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

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Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 11, 2016 at 9:33pm

जयनित कुमार मेहता जी आपका बहुत बहुत शुक्रगुजार हूँ नवाज़िश आपकी 

Comment by जयनित कुमार मेहता on June 9, 2016 at 10:10pm
आदरणीय सूर्या बाली जी, ख़ूबसूरत शे'रों से सजी इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आपको।

कौन किसका साथ देता है यहाँ पे उम्र भर
शाम तक तेरा ये साया भी जुदा हो जाएगा

अपने बारे मे सभी से पूछते रहते हो क्यूँ
अपना ही किरदार इक दिन आईना हो जाएगा

कौन 'सूरज' है पराया कौन अपना है यहाँ
ओढ़ लो थोड़ा सा ग़म तो सब पता हो जाएगा

बहुत उम्दा!
Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 9, 2016 at 12:27pm

अनुज  भाई और मदन मोहन जी आप दोनों का बहुत बहुत शुक्रिया । दुवाओं में याद रखिएगा । 

Comment by Anuj on June 8, 2016 at 4:06pm

आदरणीय सूर्या बाली जी, आपकी ग़ज़ल में जो सबसे पहले ध्यान खींचने वाली चीज है वो है रवानी . जबान को कहीं तोड़ने मरोड़ने की कोशिश नहीं की गयी है. यह किसी भी ग़ज़लकार के लिए एक बड़ी उपलब्धि होती है . बधाईयाँ !

Comment by Madan Mohan saxena on June 8, 2016 at 2:38pm

रफ़्ता रफ़्ता ज़िंदगी भी बेवफ़ा हो जाएगी
रफ़्ता रफ़्ता इस जहां में सब फ़ना हो जाएगा

कौन 'सूरज' है पराया कौन अपना है यहाँ
ओढ़ लो थोड़ा सा ग़म तो सब पता हो जाएगा

बेहतरीन गज़ल

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 8, 2016 at 1:01pm

राजेश कुमारी जी और गिरिराज भण्डारी जी ग़ज़ल पर अपने विचार रखने के लिए आप दोनों का तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2016 at 12:20pm

आदरनीय सूर्या बाली भाई , इस बेहतरीन गज़ल से मंच को नवाजने के लिये आपका हार्दिक आभार ।

कौन किसका साथ देता है यहाँ पे उम्र भर

शाम तक तेरा ये साया भी जुदा हो जाएगा -- हासिले गज़ल शे र के लिये बधाई आपको ।

मक्ता भी बहुत खूब है -- वाह !!
कौन 'सूरज' है पराया कौन अपना है यहाँ

ओढ़ लो थोड़ा सा ग़म तो सब पता हो जाएगा

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 8, 2016 at 8:15am

धड़कनें पूछेंगी ख़ुद से बेक़रारी का सबब

दो दिलों के दरमियाँ जब फ़ासला हो जाएगा---वाह्ह्ह्हह 

 

कौन किसका साथ देता है यहाँ पे उम्र भर

शाम तक तेरा ये साया भी जुदा हो जाएगा---बहुत उम्दा 

इस शानदार ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई लीजिये आ० डॉ ० सूर्या  बाली जी 

 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 7, 2016 at 9:48pm
सुशील जी , उस्मानी साहब,महर्षि जी, चौहान साहब,और सौरभ जी आप सभी अदीबों और क़द्रदानों का दिल से बहुत बहुत शुक्रिया

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 7, 2016 at 8:33pm

कौन किसका साथ देता है यहाँ पे उम्र भर

शाम तक तेरा ये साया भी जुदा हो जाएगा

  

कौन 'सूरज' है पराया कौन अपना है यहाँ

ओढ़ लो थोड़ा सा ग़म तो सब पता हो जाएगा

उपर्युक्त शेर और मक्ते के बरअक्स आपकी ग़ज़ल पर दिल से दाद, आदरणीय सूर्य बाली जी..

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