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ग़ज़ल मनोज अहसास(इस्लाह के लिए)

221 2121 1221 212

बेचैनियों के रंग सवालो में भर गये
मंज़िल से पूछता हूँ कि रस्ते किधर गये

दिल को निचोड़ा इतना कि अहसास मर गये
खुद को बिगाड़ कर तुझे हम पार कर गये

मुझको उदास देखा जो मिलने के बाद भी
वो अपने दिल का दर्द बताने से डर गये

पूनम की शब का चाँद जो खिड़की पे आ गया
कमरे में मेरे यादों के गेसू बिखर गये

साहिल की कैद में कहीं जलती है इक नदी
मेरे ख्याल रेत के दरिया में मर गये

वीरानियों को अपना मुकद्दर समझ लिया
सारे फरेब सहके वो चुप में उतर गये

महताब पर नहीं है हवा भी सकून भी
सन्नाटा दिल में भरने को हम क्यों उधर गये

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by सीमा शर्मा मेरठी on April 5, 2016 at 12:45pm
बहुत खूब वआह मनोज जी

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