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ग़ज़ल-आरजू तुमसे मिलने की करने लगी

वह्र-212 212 212 212


आरजू तुमसे मिलने की करने लगी।
हसरतें मेरे दिल की सँवरने लगीं।।

कौन हो तुम अभी जानती भी नही।
जाने तुम पर ही क्यूँ ऐसे मरने लगी।।

हो गया है मुझे क्या ऐ मेरे सनम।
आहटों पर भी मैं गौर करने लगी।।

हुश्न की हूँ परी सब मुझे बोलते।
तुमसे मिलके मैं इतना निखरने लगी।।

झूठ कुछ भी किसी से न कहती थी मैं।
तुमसे मिल के बहाने भी करने लगी।।

देख लूँ जो सनम तुम चले आ रहे।
बन के राहों में कलियाँ बिखरने लगी।।

दिल के इतने करीब आ गए हो मेरे।
दूर तुमसे न हो जाऊँ डरने लगी।।

रात कटती नही अब मिले बिन सनम।
सर्द आहें मैं रातों को भरने लगी।।

इतना खुश थी न मिलने के पहले सनम।
अब तो बिगड़ी तबीयत सुधरने लगी।।

-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by रामबली गुप्ता on March 12, 2016 at 4:14pm
आ.आशुतोष जी एवं नरेंद्र चौहान जी ग़ज़ल पर आप लोगों के
हौसला अफ़जाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया
Comment by narendrasinh chauhan on March 11, 2016 at 2:21pm

खूब सुन्दर रचना

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 11, 2016 at 10:12am

दिल में उठते प्यार के सुखद अहसास का बखूबी चित्रण करती शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सादर 

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