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बस दृष्टा बने रहो

तोड़ कर आरोपित बन्धन 
जब जब
बंधना चाहा जी चाहे बंधन में
पूरी तरह असफलता केवल मिली
न कल न आज
सम्भव ही नहीं स्वंय का स्वंय से मुक्त होना
कभी दलील ने
कभी दहलीज़ ने
कभी सीखी सिखाई
नसों में दौड़ती तहज़ीब ने
रोक लिए कदम
बस केवल हो पाया  इंतज़ार
तारों के जागने का
धूप के भागने का
कि  एक मैं  रहूँ एक मेरा संसार
मेरा आकाश मेरी  बंद आँखे
एक पूरी खुली दुनिया
जागती दुनिया से बहुत सुंदर
बहुत खुली अछूती बहुत
बहुत उन्मुक्त ,मुक्त
मेरी स्वंय की पूरी की पूरी दुनिया
 
लेकिन होता क्या उसमें भी
उसमें भी मंत्र- मुग्ध,मृग मरीचिका
बस छले जाते रहो ,चले जाते रहो
बस दृष्टा बने रहो  
 
नहीं  अस्तित्व
अस्मिता का प्रश्न ही नहीं
एक भी मेरा काम
हाथ भर भी हिला पाने का
जुबान  भर भी चला पाने का
भाग  जाने अथवा थक जाने का
कभी प्यास कभी पसीना
पहाड़ चढ़ना उतरना जीना
पर नहीं कुछ भी अपना वश
की किसी छाँह को ढूढ़ पाऊँ
दो पल को सिमट जाऊँ
नहीं कुछ भी अपना वश
बस दृष्टा बने रहो
 
सामने चौसर बिछी
मालूम भी रहे मोहरे
पर एक भी हिला पाने का प्रावधान नहीं
एक स्वर भी बोल पाने का प्रावधान नहीं
बस दृष्टा बने रहो
 
दौड़ते दौड़ते हांफ जाने पर
पहाड़  से फिसल जाने पर
निराधार हो गिरते चले जाने पर
भयाक्रांत हो जाने पर
खुल जाना  स्वप्न का अपनी ही चीख से
 
 
क्या यही हैं मेरी निजी दुनियाएं
जहाँ सिर्फ और सिर्फ मैं हूँ और मेरा कोई वश नहीं
मूक हूँ बस दृष्टा  मात्र
बंधन  से मुक्त होना कहीं नहीं संभव
किसी भी दुनिया में
बस दृष्टा बने रहो
उस पर ये सोचना की
सारथी हैं हम
अपने ही जीवन के
निज धुरी से प्रवंचित
हथियार उठाना वर्जित
बस दृष्टा बने रहो
कृष्ण कैसे रह पाये होंगे निरपेक्ष
बाँट कर निज को
एक तरफ स्वंय
दूसरी तरफ अपनी ही समूची सेना अपने विरुद्ध
बस दृष्टा बने रहो
असम्भव
तोड़ कर बन्धन, बंधन से मुक्त होना सचमुच कहीं नहीं संभव।
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 417

Comment

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Comment by amita tiwari on March 4, 2016 at 9:10pm

 Rahila ji

तहे दिल से बहुत  शुक्रिया…"

Comment by amita tiwari on February 23, 2016 at 8:29pm

आपकी सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार. सादर

Comment by नादिर ख़ान on February 23, 2016 at 6:35pm

आदरणीय अनिता जी समाज के बंधनों की वजह से, महिलाओं के अंतर्मन की छटपटाहट को आपकी रचना ने बखूबी उकेरा।
आपको बहुत बधाई इस उत्तम रचना कर्म के लिए ...

Comment by Rahila on February 23, 2016 at 11:44am
बहुत अच्छी रचना आदरणीया अमीता जी !कहीं ना कहीं इस रचना से खुद को जुड़ा पाया । बहुत बधाई ।सादर

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