For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

औपचारिक्ता की दरकार

औपचारिक्ता की दरकार "
" पागलों की तरह भागते हुए लेक्चरर शिल्पी ने कॉलेज में आये उस नवयुवक को आलिंगन में यूँ जकड़ लिया जैसे वह भाग ना पाये।यह बात पुरे कालेज में जंगल में आग की तरह फैल गयी।जितने मुँह उतनी बातें और उतने ही लांछन!
अपने ऊपर लगते लांछनों ने उसे भीतर तक तोड़ दिया और आज तो उनकी पराकाष्ठा हो गयी थी ।लेकिन कभी-भी हार ना मानने वाली शिल्पी सभ्य सहयोगियों से दो-चार हो ली।

" मैं क्यों बदचलन आवारा हूँ कोई बताएगा मुझे ? क्योकि मैं सबसे हँसकर बात करती हूँ? क्योकि मैंने माता-पिता से विद्रोह कर प्रेम- विवाह किया हैं?"

" बाकी बातों को छोड़े आज का ही प्रसंग ले लीजिये शिल्पी जी, क्या यह अमेरिका इंग्लैण्ड हैं जो आप......" वरिष्ठ मिश्रा जी ने कहा

" अमेरिका इंग्लैण्ड तो नहीं ,परन्तु तीन वर्ष बाद मिले भाई से भी औपचारिक्ता की दरकार हो सकती हैं ?" कहती शिल्पी आसुंओं के सैलाब को नहीं रोक पायी।
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 542

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Archana Tripathi on February 28, 2016 at 2:52am
रचना को अमूल्य समय देने और समीक्षात्मक टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीया कांता जी
Comment by kanta roy on February 23, 2016 at 9:08am
वाह ! क्या गज़ब का पंच रोपित किया है आपने यहां लघुकथा में आदरणीया अर्चना जी।
गले लगना , बाहर किसी के साथ नज़र आ जाना वगैरह जैसी चीजों में , गलत प्रकरण को ढूढ़ लेना ये हमारी सोच की विडम्बना है। इन सोचों के कारण ही आज भी कितनी लडकियां घरों में अशिक्षित कैद कर ली जाती है। शक के इस प्रवृत्ति में कितने घर टूट जाते है। बहुत व्यापक चिंतन को समेत है आपने इस छोटी सी लघुकथा में। ढेरों बधाई आपको।
Comment by Archana Tripathi on February 23, 2016 at 8:56am
अंदेशा होने के बावजूद आपने सब्र से कथा पढ़ी,हार्दिक धन्यवाद आपका आदरणीय सतविंदर कुमार जी ।
Comment by Archana Tripathi on February 23, 2016 at 8:53am
हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पांडेय जी
Comment by Archana Tripathi on February 23, 2016 at 8:53am
आदरणीया सीमा जी हार्दिक धन्यवाद ,समाज की यह ओछी नजर दर्द तो देती ही हैं ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 22, 2016 at 2:24pm
वाह्ह्ह्! कथा के पहले वाक्य को पढ़ते ही अंदेशा सा होने लगा था कि यह किस और बढ़ेगी।पढ़ते पढ़ते अंदेशा यकीन में बदलता गया।बहुत ही सधे अंदाज़ में लोगों की मानसिकता पर कटाक्ष किया है आपने।हार्दिक बधाई
Comment by pratibha pande on February 22, 2016 at 1:31pm

तथाकथित पढ़े लिखे लोगों का भी अक्सर ये  ही दृष्टिकोण होता है ,बहुत सार्थक लघु कथा बुनी है आपने सुगढ़ित शिल्प के साथ ,हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया अर्चना जी 

Comment by Seema Singh on February 18, 2016 at 8:48pm
बहुत खूब दीदी, समाज की नज़र का क्या कहिये।सारी मर्यादाएं शिष्टाचार स्त्री के ही तो हिस्सें में हैं। बधाई इस कथा के लिए।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया

पलभर में धनवान हों, लगी हुई यह दौड़ ।युवा मकड़ के जाल में, घुसें समझ कर सौड़ ।घुसें समझ कर सौड़ ,…See More
23 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service