माही मुझे चुरा ले मुझसे, मेरी प्याली खाली कर दे।
रम जा या फिर मुझमे ऐसे, छलके प्याली इतना भर दे।
मैं बदरी तू फैला अम्बर
मैं नदिया तू मेरा सागर,
बूँद-बूँद कर प्यास बुझा दे
रीती अब तक मन की गागर,
लहर-लहर तुझमें मिल जाऊँ, अपनी लय भीतर-बाहर दे।
रम जा या फिर मुझमे ऐसे, छलके प्याली इतना भर दे।
शब्द तू ही मैं केवल आखर
तू तरंग, मैं हूँ केवल स्वर,
रोम-रोम कर झंकृत ऐसे
तेरी ध्वनि से गूँजे अंतर,
माही दिल में मुझे बसा कर, कण-कण आज तरंगित कर दे
रम जा या फिर मुझमे ऐसे, छलके प्याली इतना भर दे।
बोले अब ये दिल की तड़पन
तोड़ूँ सारे झूठे बंधन,
भीगूँ यूँ तेरी बारिश में
जी लूँ मैं पतझड़ में सावन,
मुझको साकी गले लगा ले ,वरना आ अब मुझे ज़हर दे ।
रम जा या फिर मुझमे ऐसे, छलके प्याली इतना भर दे।
दरस तेरा मन कैसे पाए,
राह बता जो तुझ तक लाए,
तुझ तक पहुँचे मेरी तड़पन
खुद तू ही मिलने आ जाए,
हर मंज़र में तुझको पाऊँ, मुझको साकी वही नज़र दे।
रम जा या फिर मुझमे ऐसे, छलके प्याली इतना भर दे।
मौलिक और अप्रकाशित
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आदरणीया प्राची जी दरस तेरा मन कैसे पाए,
राह बता जो तुझ तक लाए,
तुझ तक पहुँचे मेरी तड़पन
खुद तू ही मिलने आ जाए,
हर मंज़र में तुझको पाऊँ, मुझको साकी वही नज़र दे।
रम जा या फिर मुझमे ऐसे, छलके प्याली इतना भर दे....मन को मुग्ध करते इस गीत की इन पंक्तियों के लिए बिशेस रूप से बधाई स्वीकार करें सादर
सुन्दर गीत के लिए आपको बधाई i सादर |
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