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एक थी रानी (लघुकथा )राहिला

लंदन से जावेद को लौटे सिर्फ दो दिन ही हुये थे । और इन दो दिनों में वो खूब समझ गया था कि इस बार अम्मी-अब्बू किसी भी सूरत में उसकी शादी से फारिग होना चाहिते हैं। अब वो वक्त आ गया था जब उसे अपनी मुहब्बत का खुलासा कर देना चाहिये।
"अब्बा!मुझे आपसे कुछ जरूरी बात करनी है।"वो सोफे पर धसते हुये बोला ।
"किस बारे में?"
"जी..शादी के बारे में।"
"हां..हां..कहो।"
"दरासल मैं एक लड़की को बहुत पहले से पसंद करता हूं और चाहता हूं कि आप उसके घर पैगाम भिजवा दें।"कह वो अब्बा का चेहरा पढ़ने लगा।
"अरररे...वाह!! बरखुरदार!आप तो पहले से ही दुल्हन पसंद करके बैठे है। बहुत अच्छा!हम वैसे ही ख्बार हो रहे थे। क्या हम जानते है कौन है वो लोग ?"लहज़े में खुशी के साथ कुछ मायूसी की नमी थी।
"अब्बा आप जानते हैं उन लोगों को।वो जयपुर वाले खालू के भाई की बेटी!"
"कौन??र.ररानी!!"वो हकला से गये।
"अच्छा,तो अब आया समझ में, हर छुट्टियों में सिर्फ जयपुर ही क्यों?अम्मी के अंदाज में नाराज़गी थी।
"अगर तू रानी की बात कर रहा है तो ये रिश्ता हरगिज़ मुमकिन नहीं"अब्बा सपाट लहज़े में बोले।
"लेकिन क्यूं?"
"क्योंकि तू कुछ नहीं जानता। वर्षों से उसके मां -बाप ने एक बहुत बड़ा राज़ सबसे छिपा के रखा।उस लड़की का बचपन से ही मुम्बई के बहुत बड़े अस्पताल में इलाज चल रहा था । और डाक्टर ऑपरेशन के लिये उसके बड़े होने तक का इंतेजार कर रहे थे।"
"क्या..?ऑपरेशन!!क्या हुआ था उसे?वो ठीक तो है ना"फिक्र और घबराहट उसके चेहरे पर फैल गयी ।
"घबराने की बात नहीं बेटा! वो ठीक है । ऑपरेशन भी कामयाब रहा लेकिन..."
"लेकिन क्या? "
"लेकिन वो अब रानी नहीं रही,राजा बन गई है"
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Rahila on February 24, 2016 at 11:04am
आदरणीय योगराज सर जी!सादर आभार आपने तो मुझे चकित ही कर दिया।मेरी इतनी सारी रचनाओं को अपना अमूल्य वक्त देकर । बहुत शुक्रिया।आपकी इस रचना पर ऐसी प्रतिक्रिया के बाद मुझे एहसास हुआ कि आज अगर कोई पाठक ये पढ़ेगा तो इन हालातों पर विश्वास करना कठिन होगा।लेकिन मैंने जिस वक्त को लेकर ये रचना लिखी उस वक्त तो फोन आम घरों में होना दूर की कौड़ी थी । तब की घटना लिख तो डाली लेकिन आज के संचार साधनों के युग का ध्यान नहीं आया । सादर

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 24, 2016 at 10:51am

कथ्य और शिल्प के दृष्टिकोण से बेहद कसी हुई लघुकथा है राहिला जीI पिछले कुछ अरसे से आपकी रचनायों में निरंतर गुणात्मक सुधार देखना बेहद आश्वस्तकारी हैI हालाकि रानी के "राजा" हो जाने की बात से जावेद का गाफिल होना थोडा अजीब सा लग रहा है, बहरहाल, हार्दिक बधाई प्रेषित हैI  

Comment by Rahila on February 16, 2016 at 11:55am
आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी! पहले तो आपने मेरी रचना पर गौर किया इस बात का बहुत आभार । दूसरी बात जितना धमाकेदार खुलासा है ,आज सोचने पर मजबूर हो गयी हूं जब रचना की नायका के साथ हुआ होगा उसके लिये कैसा हुआ होगा समाज का सामना करना । आप सब की प्रतिक्रिया ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया । आप ने वक्त दिया रचना को पुनः आभार । सादर
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 16, 2016 at 11:44am

आ0 राहिला जी इस लघुकथा ने तो धमाका कर दिया । सपने इस अंदाज में भी बिखरते हैं सोचा न था । इस कसी हुई कथा के लिए हार्दिक बधाई ।

Comment by Rahila on February 16, 2016 at 9:29am
बहुत आभार सिद्दीकी साहब!आपको रच।ना पसंद आई मेरा लेखन सार्थक हुआ । बहुत शुक्रिया ।
Comment by Rahila on February 16, 2016 at 9:27am
बहुत आभार आदरणीया प्रतिभा दी! सही कह रही है आप ऐसे लोगों का दर्द केवल वही जान सकते है । आपने रचना के मर्म उस लड़की के नजरिये से समझा । बहुत आभार ।
Comment by MUZAFFAR IQBAL SIDDIQUI on February 15, 2016 at 11:02pm

एक अलग तरह का विषय , और आखिर में कहानी का  अन्त ,कल्पनाओं से परे हो जाना।  जो वास्तविकता भी हो सकती है।  ...... अच्छा लगा। 

Comment by pratibha pande on February 15, 2016 at 7:44pm

नया विषय है ,शिल्प में कसावट  है ,पर ये मुद्दा संवेदनशील है .ट्रांसजेंडर वाले लोगों की दुनिया बहुत तनावपूर्ण होती है .आइडेंटिटी क्राइसिस उन्हें सारी उम्र झेलना होता है ,  ,बधाई इस रचना पर    

Comment by Rahila on February 15, 2016 at 8:45am
बहुत -बहुत शुक्रिया आदरणीय परवेज साहब!लेकिन किसी की दिल की दुनिया उजड़ी और आपको हंसी सूझी।खैर अपना-अपना नजरिया है रचना के मर्म को समझने का । सादर
Comment by Rahila on February 15, 2016 at 8:41am
प्रिय जानकी दी! आपकी स्नेहिल उपस्थित मुझे बेहद प्रिय है और आपकी टिप्पणी ने तो मेरा हौसला दुगना कर दिया । बहुत आभार, बहुत शुक्रिया । सादर

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