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ढोर( लघुकथा)राहिला

सांझ ढले एक गडरिया अपनी भेड़े चरा कर लौट रहा था।रास्ते में एक बाजार से गुजर हुआ।वहां एक दुकान मे लगे काले शीशे में अपना अक्स देख,सबसे आगे चल रही भेड़ को दुकान के अंदर दूसरी भेड़ होने का भ्रम क्या हुआ,वो तो दुकान में घुसी ही,साथ उसके भेड़चाल से सारी की सारी भेड़े भी जा घुसी । देखते ही देखते अंदर धमाचौकड़ी मच गई । काफी जतन के बाद जैसे-तैसे उन्हें बाहर निकाला गया ।लेकिन इस घटना के चलते दुकानदार का काफी नुकसान हुआ और नौबत झगड़े तक पहुँच गई । लेकिन कुछ सियाने लोगों के हस्तक्षेप से मामला तूल नहीं पकड़ पाया । परंतु चर्चा का बाजार अवश्य गर्म हो गया ।
"अच्छा हुआ मामला रफादफा हो गया वरना बेवजह जानवरों के कारण इंसानों का सिर फूटता।"
"हां सही कहते हो भई!जानवर बुद्धि है,क्या जाने?कहां जाना कहाँ नहीं । फिर ये ढोर तो वैसे भी अपनी भेड़चाल के लिये मशहूर है । जहाँ एक गई वहीं पीछे-पीछे बिना सोचे समझे सब की सब।"
"अरे छोड़ो काका!ढोर की तो ढोर से ढ़क गई, लेकिन ऐसे इंसानो को क्या कहोगे?"
वहां से गुजरते हुये एक विवादित बाबा के आश्रम में उमड़ती भीड़ को देखकर उसने कहा।
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Rahila on February 24, 2016 at 11:31am
बहुत ,बहुत आभार आदरणीय सर जी! आपके द्वारा रचना को तारीफ मिली ,मेरा लेखन सार्थक हो गया।सादर धन्यवाद

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 24, 2016 at 10:46am

वाह वाह, क्या तंज़ है राहिला जीI इस प्रभावोत्पादक लघुकथा हेतु ढेरों ढेर बधाई स्वीकार करेंI  

Comment by Rahila on February 7, 2016 at 7:43pm
बहुत आभार आदरणीय नीरज जी! बहुत शुक्रिया ।सादर
Comment by Neeraj Neer on February 6, 2016 at 7:41pm

वाह अच्छी कथा हुई है ,,,,, 

Comment by Rahila on February 6, 2016 at 4:24pm
प्रिय प्रतिभा दी! तहे दिल से शुक्रिया, बहुत आभार रचना का मर्म समझा । सादर
Comment by pratibha pande on February 6, 2016 at 2:53pm

  बहुत सुन्दर मर्म ,और उतने ही सुन्दर ढंग से कही गई कथा ,बधाई स्वीकार करें इस रचना पर प्रिय राहिला जी, 

Comment by Rahila on February 6, 2016 at 6:35am
आदरणीय सौरभ पाण्डे सर जी!जब तक आप जैसे वरिष्ठ और अनुभवी सुधिजन का आशीर्वाद प्राप्त नहीं हुआ था तो कहीं ना कहीं रचना के सार्थक होने में संदेह था । आपका बहुत शुक्रिया जो आपने मेरा हौसला बढ़ाया बहुत आभार । सादर प्रणाम ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2016 at 12:55am

सशक्त सोच के साथ संप्रेषित हुई अभिव्यक्ति केलिए हार्दिक शुभकामनाएँ, आदरणीया राहिलाजी. 

Comment by Rahila on February 5, 2016 at 8:23pm
आदरणीय सुशील सर जी! आपकी परखी नजर में मेरी रचना तारीफ़ पा गई मेरे लिये बहुत खुशी की बात है । बहुत आभार बहुत शुक्रिया ।सादर प्रणाम
Comment by Rahila on February 5, 2016 at 8:19pm
प्रिय जानकी दी!आपकी उपस्थित का बड़ा इंतेजार था।और फिर आपकी स्नेहपूर्ण हौसला अफज़ाई, बहुत -बहुत शुक्रिया दी!

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