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विदाई: हरि प्रकाश दुबे

क्यों लेटी हो गुमसुम सी,

सिर्फ एक अंगडाई दो मुझे ,

ऐसे न दो तुम विदाई मुझे,

रास आती नहीं जुदाई मुझे !

 

क्यों चुप हो सन्नाटे सी,

कभी तो सुनाई दो मुझे 

लें आती थी खुशबू तुम्हारी,

फिर वही पुरवाई दो मुझे !

 

सर्द रातों में रजाई ओढ़ातीं,

फिर वही रजाई दो मुझे

जिससे चिराग रोशन करतीं,

फिर वही दियासलाई दो मुझे !

 

जिससे मन में सुर घोलतीं

फिर वही शहनाई दो मुझे

जिससे गीत लिखे थे तुमपे.

वो नीली रोशनाई दो मुझे !

 

छत पर दिखो न दिखो,

चाँद पर दिखाई दो मुझे

या मुझे भी पास बुला लो,

वही कड़वी दवाई दो मुझे !

 

पर ऐसे न दो तुम विदाई मुझे,

कि रास आती नहीं जुदाई मुझे !!

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित”

 

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Comment

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Comment by pratibha pande on January 2, 2016 at 5:40pm

छत पर दिखो न दिखो,

चाँद पर दिखाई दो मुझे

या मुझे भी पास बुला लो,

वही कड़वी दवाई दो मुझे !..................बहुत सुन्दर ,  बधाई प्रेषित करती हूँ इस सुन्दर रचना पर आपको आदरणीय प्रकाश जी 

Comment by Samar kabeer on January 2, 2016 at 2:48pm
जनाब हरि प्रकाश दुबे जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें |

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