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अंतरात्मा - लघुकथा

अंतरात्मा - लघुकथा
देवरानी को जलाने के अमानवीय कृत्य की एकमात्र साक्षी वही थी और ससुराल पक्ष के साथ पति भी उस पर सच न बोलने के लिए हर तरह से दबाब दे रहा था।
"देख उर्मि, तेरी एक गवाही आज ससुराल की मान मर्यादा को समाज की नज़रो में गिरा देगी और यदि ऐसा हुआ तो फिर मुझसे बुरा ....।" पति के कहे शब्द उसकी चुप्पी बन रहे थे तो अंतरात्मा उसे बेचैन कर रही थी। "नहीं उर्मि नहीं इस बार तूझे चुप नहीं......।"
"देखिये! आप जो कुछ कहे, सोच समझकर निडर हो कर कहे।" गवाही के लिए खड़ी उर्मिला को कुछ सहमे देख सरकारी वकील ने उसे हौसला दिया।
"जी।" वो कुछ संभली। "घटना के समय मैं घर में ही थी और मैंने ही उसे हस्पताल पहुचाने में मदद की।" कहते हुए उसकी आँखे दर्शक दीर्घा में बैठे पति से जा मिली और उसे अपनी आवाज फिर घुटती नज़र आने लगी।
"क्या ये महज एक दुर्घटना थी या उसे जलाने का प्रयास किया गया।" अगला प्रश्न सामने था।
"जी नहीं, ये दुर्घटना नहीं थी।" उर्मिला दोबारा संभली। "उसे जलाया गया था।"
"क्या आप बता सकती है कि उसे जलाने वाले कौन थे?"
"जी, ये सब...." उर्मिला के अंतर्मन ने उसे सहारा दिया। "......ये सब मेरे सास-ससुर ने किया और मैं इसकी साक्षी हूँ।" बात पूरी कर उसने पति की ओर देखा। पति की प्रश्नवाचक आँखें जलने लगी थी मानो पूछ रही हो। "ये तुमने क्या किया उर्मि?"
"कुछ नहीं?" वो अपने आप से बुदबुदाई। "वर्षो पहले माँ की बारी में बाबा के हाथो को मुँह से नहीं हटा पायी थी, बस आज वो हाथ मैंने हटा दिया।"
'विरेन्दर वीर मेहता' (मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by VIRENDER VEER MEHTA on January 3, 2016 at 9:25am
सर्वपथम समयाभाव के कारण उपस्थित न होने के लिए सादर क्षमा। रचना पर आये सभी गुणीजनों और दी गयी सकारत्मक प्रतिक्रिया से हौसला अफ़ज़ाई की कोशिश के लिए आप सभी का सादर आभार।
Comment by Nita Kasar on December 29, 2015 at 1:21pm
हौंसले से भरी हिम्म्त की उड़ान है ये डर गई तो मर गई जिस दिन महिलायें निर्भीक होकर निर्णय लेना ठान लेंगीं अत्याचार और अपराध का ख़ात्मा हो जायेगा ।प्रेरक सार्थक कथा के लिये बधाई आद०वीरेंद्र सिंह जी ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 28, 2015 at 9:17pm
वाह्ह्ह्ह्।सुंदर चित्रण।बेहद मार्मिक रचना।हार्दिक बधाई आदरणीय।

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Comment by rajesh kumari on December 28, 2015 at 7:34pm

यदि स्त्रियाँ या कोई भी अन्याय के खिलाफ आवाज उठाये ऐसी हिम्मत करे तो ये दुनिया सुधर जाए ..बहुत बढ़िया प्रेरणास्पद लघु कथा लिखी है आपने हार्दिक बधाई आ० वीर मेहता जी 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 28, 2015 at 7:33pm

आदरणीय वीरेंदर जी ...बहुत जरूरी है लेकिन सभी में इतना साहस नहीं होता है ..बहुत सुंदर लघु कथा ..इस रचना के लिए ह्रदय से बधाई स्वीकार करें सादर 

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