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राह में सबके लिए फूल सजाकर देखो

२१२२  ११२२  ११२२  २२

 

अपनी खुशियों पे नया रंग चढ़ाकर देखो

बंद पिंजरे के ये पंछी तो उड़ाकर देखो

 

मेरी आँखों से बहा जाता है आँसू बनकर

अपनी यादों में कभी खुद को जलाकर देखो

 

बात बन जायेगी बिगड़ी है जो सदियों से यहाँ

तुम ज़रा अपनी अना को तो झुकाकर देखो

 

सिर्फ बातों के सहारे न हवा में उड़ना

तुम हकीकत नज़र आज  मिलाकर देखो

 

तुमको हर नेकी के बदले में मिलेगी खुशियाँ

राह में सबके लिए फूल सजाकर देखो

 

मैंने यादों के बनाये हैं महल अपने कई

ख्वाब मेरे हैं इन्हें अपना बनाकर देखो

 

पास मेरे तो ज़खीरा है तेरी यादों का

तुम भी सोये हुये जज़्बात जगाकर देखो

 

   (मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by मिथिलेश वामनकर on November 25, 2015 at 1:10am

आदरणीय नादिर खान सर, शानदार ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद हाज़िर है. ये अशआर लाजवाब हुए है-

बात बन जायेगी बिगड़ी है जो सदियों से यहाँ

तुम ज़रा अपनी अना को तो झुकाकर देखो........... वाह वाह 

तुमको हर नेकी के बदले में मिलेगी खुशियाँ

राह में सबके लिए फूल सजाकर देखो............ शानदार 

 

मैंने यादों के बनाये हैं महल अपने कई

ख्वाब मेरे हैं इन्हें अपना बनाकर देखो............. बहुत खूब 

एक ख़याल आया है अगर आपको उचित लगे तो... साझा कर रहा हूँ----कुछ हकीकत से भी तुम नज्र मिलाकर देखो------------ इस मिसरे को यूं भी कह सकते है-

तुम हकीकत नज़र आज  मिलाकर देखो

Comment by Sarvottam dutt purohit on November 25, 2015 at 1:04am
वाह जनाब बहुत उम्दा लिखा है

कृपया ध्यान दे...

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