For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुफ़्त का माल -(लघुकथा )राहिला

पिताजी!उस कमजोर बकरी को जल्दी हृष्ठ-पुष्ट देखने की चाह में स्नेहवश बागीचे से अलग-अलग किस्म की पत्तियां लाकर लगभग जबरन खिलाने की कोशिश कर रहे थे।लेकिन वो ढीठ की बच्ची भूख शांत होने के बाद किसी चींज को मुंह तक ना लगा रही थी।ये देख वे खीज गये और बोले:

"अरी खा ले कम्बख्त!इतने किस्म की पत्तियां मुफ़्त में मिल रही हैं और तू भाव खा रही है ।"
"अजी!गुस्सा क्यों होते हो जी ! मुफ़्त माल है!वो क्या जाने?जानवर है जानवर, इंसान नहीं है "मां कनखियों से देख, छेड़ लेकर बोली।

.
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 956

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 24, 2016 at 10:05am

बहुत बढ़िया लघुकथा कही है राहिला जीI लघुकथा की पंच-लाइन तो नॉक आउट कर देने वाली है, पढ़कर आनंद आया, बहुत बहुत बधाईI   

Comment by Rahila on November 14, 2015 at 8:13pm
आदरणीय बैजनाथ शर्मा जी!इतनी उत्साह भरी टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार । सादर नमन ।
Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 13, 2015 at 2:07pm

आदरणीया राहिला जी .... क्या बात!!!!  इसे कहते हैं .....लघुकथा|  बधाई|

Comment by Rahila on November 12, 2015 at 9:34am
बहुत शुक्रिया हौसला अफज़ाई का आदरणीय आबिद साहब!
Comment by Abid ali mansoori on November 11, 2015 at 7:34pm

सच में बहुत बढ़िया, वधाई आपको!

Comment by Rahila on November 11, 2015 at 1:31pm
आदरणीय विजय जी!,सादर प्रणाम, आपका आशीर्वाद सराहना के रूप में प्राप्त हुआ मेरा लिखना सार्थक हो गया । बहुत शुक्रिया, बहुत आभार ।
Comment by Rahila on November 11, 2015 at 1:23pm
बहुत शुक्रिया आदरणीय सुनील जी! आपको मेरी रचना पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ । मैं तो खुद आपकी लेखनी से बहुत प्रभावित हूं । सादर आभार ।
Comment by vijay nikore on November 11, 2015 at 12:44pm

कुछ ही शब्दों में बहुत कुछ कह दिया है .... तभी तो यह लघु कथा अच्छी बनी है। हार्दिक बधाई।

Comment by Rahila on November 10, 2015 at 3:26pm
आदरणीय मिथलेश जी! आपकी प्रतिक्रिया का बेसब्री से इंतेजार कर रही थी।आपको रचना पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ। बहुत शुक्रिया,बहुत आभार ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 10, 2015 at 1:46pm

आदरणीया राहिला जी, मानवीय प्रवृत्ति को उभारती बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है. आपने सटीक और सधी शैली में कथ्य के मर्म को शाब्दिक किया है. इस प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
11 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
52 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
57 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"मौजूदा जीवन के यथार्थ को कुण्डलिया छ्ंद में बाँधने के लिए बधाई, आदरणीय सुशील सरना जी. "
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।जब  चाहो  तब …"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"भाई शिज्जू जी, क्या ही कमाल के अश’आर निकाले हैं आपने. वाह वाह ...  किस एक की बात करूँ…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपके अभ्यास और इस हेतु लगन चकित करता है.  अच्छी गजल हुई है. इसे…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बहुत अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ा रहा हूँ , आपने खूब उन्नति की है …"
4 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service