तुमसे ही तो है
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बहुत कुछ कह डालने की चाहत में गागर में सागर भर डाला आपने। तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब आबिद अली मंसूरी साहिब। इस भावपूर्ण रचना को विस्तार देकर बढ़िया छंदबद्ध सृजन भी आप कर सकते हैं।
आदरणीय मोहन जी सच कहा आपने, सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद!
आदरणीय मिथिलेश जी आभार आपका मनोवल बढ़ाने के लिए, आशा है समय-समय पर मार्गदर्शन भी करते रहेंगे आप!
आदरणीय विजय जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आपका!
आदरणीय मंसूर जी, माँ की ममता कि क्या कहने , मगर लगता है, समय के साथ माँ के बदले हुए रूप पर बहुत कम काम हुआ है, जैसी तबदीली समाज में हो रही उस से माँ के रिश्ते में भी तबदीली देखने को मिल रही है
आदरणीय मंसूर जी बढ़िया प्रस्तुति हुई है हार्दिक बधाई
रचना प्रकाशन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय सम्पादक महोदय!
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