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आज मेरे गाँव से गली ओझल हो गयी। "अज्ञात "

जब थी उठी बरसात से,                        

पहले पहल भीनी महक,                         

था मन तरंगित हो उठा,                              

सुन पक्षियों की चह चहक,                                   

गुमशुदा, अब बाग से,                       

क्यों कली कोमल हो गयी।                       

बीते पलों को याद कर,                         

आँख, बोझल हो गयी।
पत्थरों की शगल में,                               

सड़क सौतन क्या बनी,                       

हो द्रवित फिर आज वह,                        

कह उठी हो अनमनी,                                                  

आज मेरे गाँव से,                               

गली, ओझल हो गयी।                                

बीते पलों को याद कर,                         

आँख, बोझल हो गयी।                      
अब सघन पाषाण से,                         

वह आच्छादित हो गया,                            

आपसी सब भाईचारा,                        

भी विवादित हो गया,                           

एकता भी अब बदलकर,                       

आज दो दल हो गयी ।                          

बीते पलों को याद कर,                         

आँख, बोझल हो गयी।                      
अजय शर्मा  " अज्ञात  "

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Ajay Kumar Sharma on November 2, 2015 at 9:08am

परम आदरणीय शिज्जू सर मेरे मनोभावों पर आपकी टिप्पणी से मन पुलकित हुआ। आभार प्रकट करता हूँ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 1, 2015 at 7:59pm
आदरणीय अजयजी बहुत सुंदर रचना है बधाई आपको
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 31, 2015 at 12:30pm

अजय जी ..आज आपकी दो रचनाएँ पढने का अवसर प्राप्त हुआ . अतीत के सुनहरे पलों की याद दिलाती इस शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

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