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खडी परधानी में भऊजी

1222   1222    1222   1222

निशानी हार फूलो पे मुहर तुम सब लगा देना
खड़ा परधानी मेें देखो भऊजी को जिता देना


सुबह अब चार से पहले भऊजी रोज जागेगी
गली में हाथ जोडे़ मुस्‍कुरा कर वोट माँगेगी
बहुत खुश हैं न दॉंतो से जो पाते तोड़ अब रहिला
पता जब से चला उनको हुआ ये गॉंव है महिला
कहे बूढे़ सभी मुझसे, जरा उनसे मिला देना
निशानी हार फूलो पे मुहर तुम सब लगा देना
खड़ा परधानी मेें देखो भऊजी को जिता देना

रसोई में न काटे अब सुनो नारी कभी जीवन
जलाना छोड़ दो उसको उसे जीना अभी जीवन
कलम अब हाथ में उसके भला कर के दिखायेगी
न नर से है कभी वो कम तुझे कर के बतायेगी
मिले अब जीत बस उनको सभी मिल कर दुआ देना
निशानी हार फूलो पे मुहर तुम सब लगा देना
खड़ा परधानी मेें देखो भऊजी को जिता देना


न करती बात जो मुझसे वही मुझको बुलाती है
बडे़ ही प्‍यार से मुझको गले अपने लगाती है
बना कर चाय घर में से अभी भाई यहॉं लाये
उन्‍हें परधान पति कह कह सभी उनका ही सिर खाये
सुनो शिकवा शिकायत फिर कभी मुझको बता देना   
निशानी हार फूलो पे मुहर तुम सब लगा देना
खड़ा परधानी मेें देखो भऊजी को जिता देना

अखंड गहमरी गहमर गाजीपुर
मौलिक एवं अप्रकाशित रचना

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