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हिन्दी गज़ल - ज्ञान की अति खा रही है भावनायें ( गिरिरज भंडारी )

2122     2122     2122

एक दिन आ कर तुम्हें भी हम हँसायें

यदि हमारे बहते आँसू मान जायें

 

क्यों समय केवल उदासी बांटता है ?

क्या समय के पास बस हैं वेदनायें

 

जानकारी ठीक है ,पर ये भी सच है

ज्ञान की अति खा रही है भावनायें

 

इस तरफ है पेट की ऐंठन सदी से

उस तरफ़ है भूख पर होतीं सभायें  

 

बात में बारूद शामिल है उधर की

हम कबूतर शांति के कैसे उड़ायें ?

 

अब धरा को छू रहा है सर हमारा

और कितना, बोलिये हम सर झुकायें ?

 

लूट, मक्कारी छपी है पृष्ठों में सब

अब जगह पातीं नहीं जातक कथायें

 

मित्रता की बातें वो भी कर रहे हैं

वो जिन्हें अवसर मिले तो काट खायें

 

अब कहाँ सम्भावना ढूँढे बताओ ?

ईद दीवाली सभी मिल जुल मनायें

 

आसमानों की अगर इच्छा बची है

पंख तौलें, और थोड़ा फड़फड़ायें

 

जब अँधेरा ही अँधेरा है इधर तो

क्यों न दीपक राग ही हम गुनगुनायें

**********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 17, 2015 at 8:16am

आदरणीय समर भाई ,

हम कबूतर अम्न के कैसे उड़ाऐं'   --  ये मिसरा बहर के अनुसार सही है , पर मै हिन्दी शब्द चाहता था - और
शांति के दू 2122 / त हम कैसे 1222 / उड़ाऐं' 122   --  इस मिसरे मे शब्द हिन्दी है तो मिसरा बे बहर हो गया है

अतः मै सोच रहा हूँ मिसरे को ऐसा कर लूँ -

बात में बारूद शामिल है उधर जब

तब कबूतर शांति के, कैसे उड़ायें  --- मिसरा कैसा है अब बताइयेगा ।

Comment by दिनेश कुमार on September 17, 2015 at 5:11am
आदरणीय गिरिराज सर बेहतरीन ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई आपको
Comment by Samar kabeer on September 16, 2015 at 11:28pm
एक मिसरा और सूझा है,इसे भी देख लीजिये :-

'शांति के दूत हम कैसे उड़ाऐं' ।
Comment by Samar kabeer on September 16, 2015 at 10:34pm
ये मिसरा देखिये ,अगर उचित लगे तो :-

'हम कबूतर अम्न के कैसे उड़ाऐं'

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 16, 2015 at 9:26pm

आदरणीय श्री सुनील भाई , गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 16, 2015 at 9:25pm

आदरणीय रवि भाई , रचना की कमियाँ बताने मे आप संकोच न किया करें , इस मंच मे सभी को अगर कुछ गलती लगे तो कहने का अधिकार  है ।
आदरणीय समर भाई का इशारा मिसरे के लय के लिये है , सब कुछ सही होने के बाद भी कभी कभी ये स्थिति आ जाती है , अगर मात्रा किसी ऐसी जगह गिराई गई हो जो नियम से तो सही है अप्र लय बाधित कर दे , मै ठीक करने का प्रयास करूँगा । आपका हार्दिक आभार , दुबारा गज़ल पर आ कर सलाह देने के लिये ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 16, 2015 at 9:16pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका दिल से आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 16, 2015 at 9:15pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपकी स्नेहिल सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 16, 2015 at 9:15pm

आदरणीय मदन मोहन भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 16, 2015 at 9:14pm

आदरणीय राहुल भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

कृपया ध्यान दे...

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