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नज़र इंसान की घातक हुई क्या?-- ग़ज़ल -- मिथिलेश वामनकर

1222---1222---122

 

नज़र इंसान की घातक हुई क्या?

अभी नासाफ़ थी, हिंसक हुई क्या?

 

भरोसा जिन्दगी से उठ गया जो

अचानक मौत की दस्तक हुई क्या?

 

हमारे पाँव चिपके जा रहे है

नदीम उनकी गली चुम्बक हुई क्या?

 

अँधेरा हो गया है झुग्गियों में

महल में फिर वही रौनक हुई क्या?

 

यहाँ दुःख आ गया जो ताल देने

किसी की कामना मोहक हुई क्या?

 

इबारत सा मुझे क्यों ताकता है?  

मेरी सूरत कोई पुस्तक हुई क्या?

 

यहाँ हर सिम्त बुत बिखरें हुए हैं

अकीदत आपकी पूजक हुई क्या?

 

सवेरे से बहुत खामोश घर है

वही फिर आपसी बकझक हुई क्या?

 

दलालों की तबस्सुम खिल रही है 

नज़र उनकी कहीं चस्मक हुई क्या?

 

ख़ुशी कमजर्फ की आजाद देखी

किसी की आरज़ू बंधक हुई क्या?

 

अचानक से ग़ज़ल फिर हो गई है

हमारी वेदना सर्जक हुई क्या?

 

सलीका क्या सुखन का, क्या बताएं?

हमारी लेखनी मानक हुई क्या?

 

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(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
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Comment

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 17, 2015 at 7:57pm

आपके पास एक जादुई कलम है . जिंदाबाद ,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 16, 2015 at 11:56am

आदरणीय  amod bindouri जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 16, 2015 at 11:56am

आदरणीय श्याम नरेन् वर्मा जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 16, 2015 at 11:56am

आदरणीय रवि जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 16, 2015 at 11:55am

आदरणीय सुनील भाई जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 16, 2015 at 11:55am

आदरणीय सुशील सरना सर, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार 

Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 15, 2015 at 5:51pm
आ दादा जी
उम्दा हर एक शेर
बधाई
कूट कूट बधाई

सादर नमन
Comment by Shyam Narain Verma on September 15, 2015 at 5:17pm

बहुत खूबसूरत अशआर ...दिल से बधाई 

 सादर

Comment by Ravi Shukla on September 15, 2015 at 2:39pm

आदरणीय मिथिलेश जी सुन्‍दर प्रस्‍‍तुति के लिये हार्दिक बधाई स्‍वीकार करें ।

Comment by shree suneel on September 15, 2015 at 9:34am
सवेरे से बहुत खामोश घर है
वही फिर आपसी बकझक हुई क्या?.. . क्या बात!
अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय मिथलेश वामनकर सर जी, बधाई बधाई आपको. सादर

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