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जब तक लोभ नहीं त्यागोगे भारत नहीं सुधरने वाला

2 2 22 12122 2212 12222
कुछ भी नारा भले लगा लो, कुछ भी नहीं बदलनें वाला।
जब तक हम खुद ना सुधरेंगे, भारत नहीं सुधरनें वाला।।

मन तो स्वार्थ राग में डूबा, तन को बस आराम सुहाये।
जन जन जब तक नहीं जगेगा, भारत नहीं उबरनें वाला।।

हिन्दू मुस्लिम चिल्लाओ सब, राम रहीम भले गाओ सब।
जब तक लोभ नहीं त्यागोगे, भारत नहीं निखरनें वाला।।

जब तक हिंसा नफरत का, कारोबार प्रगति पर है।
तब तक किसी हाल में अपना, भारत नहीं सम्भलनें वाला।।

सरकारें सब ठीक करेंगी; बेमतलब की बातें हैं।
जब तक खुद सब ठीक न होंगे, भारत नहीं संवरनें वाला।।


मौलिक अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 3, 2015 at 11:08pm

नकारात्मक पहलू यदि व्यंग्य में न हो तो किसी तौर पर समाज को जगाने का काम नहीं करते. बल्कि और हताश ही करते हैं. 

ऐसी किसी सोच से यदि आप प्रभावित हैं तो उचित होगा आप बचिये.

शुभेच्छाएँ

 

Comment by kanta roy on September 3, 2015 at 10:56pm

हिन्दू मुस्लिम चिल्लाओ सब, राम रहीम भले गाओ सब।
जब तक लोभ नहीं त्यागोगे, भारत नहीं निखरनें वाला।।.....वाह ! बहुत खूब कही है आपने ये शेर भी , लाजवाब ! लोभ की तो बात ही भली कहा आपने आदरणीय मिथिलेश जी ,जाने ये क्या बला होती है कि पेट ही नहीं भरता है इस लोभ का ।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 3, 2015 at 5:41pm
आदरणीय मिथिलेश सर आपके आशीर्वचन की हमेशा प्रतीक्षा रहती है।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 3, 2015 at 5:40pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर, आपका सुझाव बढ़िया है लेकिन ये शीर्षक लोगों को जगाने की नीयत से चुना गया है; ये दिल पर चिट करने के उद्देश्य से चुना गया है।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 3, 2015 at 5:36pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति हुई है. हार्दिक बधाई आदरणीय पंकज जी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 2, 2015 at 11:36pm

ऐसी सकारात्मक रचना का शीर्षक निहायत नकारात्मक है, भाईजी. आपकी कोशिशों को सलाम.. 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 2, 2015 at 11:56am
सुझाव के लिए हृदय से आभार, रचना की तारीफ ले लिए शुक्रिया आदरणीय गिरिराज भंडारी सर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2015 at 11:35am

आदरणीय पंकज भाई , लाजवाब बातें कहीं है आपने ! हार्दिक बधाई आपको । काफिये मे अनुस्वार बिन्दु लगाने की ज़रूरत नही है , हटा लीजियेगा ।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 2, 2015 at 11:25am
आदरणीय रवि शुक्ल सर सादर अभिवादन।
Comment by Ravi Shukla on September 2, 2015 at 10:57am
आदरणीय पंकज जी बधाई प्रस्तुति के लिए
आपकी बात से हम पूरी तरह सहमत है की सरकारों से उम्मीद करने की जगह खुद से ही शुरुआत करनी चाहिए । उपदेश देने से अच्छा है उदहारण दिया जाये । सकारातमक और आशा प्रद सोच से समापन आशान्वित करता है । पुनः बधाई । एक बात और
काफिये में अं का इस्तेमाल टंकण त्रुटि है या सोद्देश्य है कृपया स्पष्ट करे तो आसानी हो सादर।

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