For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

" बाबू जी ! कबाड़ी वाले को क्यों बुलाया था ? "

" बस , यूँ ही . बेटा ."

" यूँ ही क्यों बाबू जी  ! आप तो उससे कह रहे थे कि इस घर का सबसे बड़े  कबाड़ आप हैं और वह आपको ही ले जाये ."

" इसमें झूठ क्या है ? इस घर में मेरी हस्ती कबाड़ से ज्यादा है क्या ? "

" बाबू जी , प्लीज़ आप  ऐसा न कहिये . क्या मैं या इंदु  आपका ख्याल नहीं रखते ? "

" दिन भर कबाड़ की तरह घर के इस  या उस कोने में पड़ा रहता हूँ और वक्त - बेवक्त तोड़ने के लिए दो रोटियाँ मिल जाती हैं , तुम दोनों  ने मेरे लिए ऐसी दिनचर्या फिक्स कर दी है जो  एक कैदी की होती  है . क्या इसी को  ख्याल रखना कहते हैं  ? "

" बाबू जी ! मैं हाथ जोड़कर कह रहा हूँ कि आप  न ऐसा सोचिये और न ही ऐसा कहिये ."

" जो सच है , वही  तो कहूँगा न . हाथ  जोड़ कर मेरी भावनाओं का मजाक मत बनाओ ."

" बाबू जी ! आप ही तो कहा करते थे कि तेरी माँ ने आपकी कम सेलेरी के कारण तंग हालत में  बड़ी मुश्किल से गृहस्ती की गाड़ी को सिरे चढ़ाया है , आज परिस्थितियाँ और भी विकट हैं , जब तक पति - पत्नी दोनों न  कमाएँ , बदले हुए जमाने की अच्छी शिक्छा बच्चों को नहीं दी जा सकती और आपकी सद- इच्छा के अनुरूप ही नौकरी करने वाली लड़की से मेरा विवाह हुआ है ."

" तू कहना क्या चाहता है ? "

" बाबू जी , मुझे गलत  मत समझिये  . आफिस में दिनभर खटकर आने  से  हम  थक सकते हैं तो क्या इंदु को थकान नहीं हो जाती होगी दिन भर आफिस में बिताकर ? "

"जो कहना चाहता है  खुलकर कह .भूमिका मत बाँध  l  मैंने कोई शिकायत की है क्या , जो मेरी क्लास लेने लग पड़ा . "

" बाबू जी , इससे बड़ी शिकायत क्या होगी कि आप अपने बच्चों के होते हुए भी स्व्यम को कबाड़ कहें ......... आज के जमाने  की नौकरियाँ , आपके जमाने की नौकरिओं से अलग हैं , अब कई बार आठ की बजाए दस या बारह घंटे  भी नौकरी को देने  पड़ते हैं ."

" यह कहना चाहता कि मैं स्वार्थी हूँ और सिर्फ अपने बारे में सोचता हूँ ."

" प्लीज बाबू जी , अपने बच्चों की मजबूरी को आपके समर्थन की जरूरत है , स्व्यम को उपेक्षित समझकर बच्चों को अपमानित मत कीजिए ."

" केसा समर्थन और कैसी मजबूरी ? "

" कुछ नहीं बाबू जी , बस इतना ही कि आपके अस्तित्व के लेम्प - पोस्ट के नीचे बैठ कर मैंने जिंदगी का अक्षर - ज्ञान पाया है , आपकी अंगुली को न पकड़ा होता तो मेरे कदमों को चलने का सहुर न आता . आपके कारण ही तो मेरा नाम पुकारा जाता है . आप मेरे लिए या इंदु के लिए कबाड़ नहीं हो सकते ."

" बेटा , तुम्हारी माँ ने जाते वक्त मुझसे कहा था कि बच्चों के बीच रह कर कभी रोना मत , क्या तू आज मुझे रूलाना चाहता है , अरे पगले कबाड़ी के सामने खुद को कबाड़ी कहना , वह आखरी पाठ था जो मैंने  तुझे पढ़ा दिया है . इसमें कोई शक नहीं कि एक ही छत के नीचे रहने वाले घर के हम सभी सदस्य , अपने अंतर - मन में एक - दुसरे के प्रति बेहद लगाव रखते हुए भी अपनी - अपनी व्यस्तता या अहंभाव के कारण व्यक्त नहीं करते . इस कारण सबके मनों में उपेक्षा और अलगाव का भाव घर करने लगता है , जो बहुत बार घर टूटने का कारण भी बन जाता है . हमें अपने अन्दर घर बनाये अपनत्व को कभी - कभी शब्द भी देने चाहिए , अपनत्व भरे शब्द संबंधों की दुनिया  को सरस बनाते हैं और  संबंधों की डोर हमेशा मजबूत बनी रहती है ."

" आपने ठीक कहा , बाबू जी  . आज  रोज - मर्रा  के सभी कामों कि छुट्टी . आज हम सब शहर की सबसे बड़ी  झील के किनारे पिकनिक पर चलेंगे और वहीं के किसी ढाबे पर खाना खायेंगे . इतना ही नहीं मैं और इंदु दोनों ही एक सप्ताह की छुट्टी लेकर सारा दिन आपके संग घर में बिताएंगे ."

" नहीं बेटा , अकारण काम से छुट्टी नहीं करते . तुम्हें तो पता है की में बहुत मजबूरी में ही आफिस से छुट्टी लिया  करता था . हाँ , आज झील - किनारे जरुर चलेंगे ."       

.              

( मौलिक एवं अप्रकाशित )                                                                

सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा 

Views: 490

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा on August 22, 2015 at 8:49am

सभी मित्रों का इस आशीर्वाद एवं समर्थन के लिए धन्यवाद : सुरेन्द्र अरोड़ा 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 19, 2015 at 11:48am

सुन्दर प्रेरणायुक्त कथा! आदरणीय अरोड़ा जी! आज संवाद की ही कमी हो गयी है परिवार के सदस्यों के बीच!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 18, 2015 at 8:36pm

बहुत अच्छी एक सकारात्मक सुखद अंत की  कथा पढने को मिली ऐसे ही लेखन की आवश्यकता है आज ताकि सार्थक सन्देश पँहुचे आज के युवा  को प्रेरणा मिले|बाकी बातें मिथिलेश भैया ने कह दी |हार्दिक बधाई आपको . 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2015 at 10:33am

आ0 भाई सुरेंद्र जी, बहुत ही सारगर्भित कथा कही है । कोटि कोटि बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 17, 2015 at 12:37pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी, आज के संयुक्त परिवार की समस्या को बहुत ही बढ़िया ढंग से शाब्दिक किया है. थोड़ी सी कसावट और वर्तनी दोष निवारण इस रचना की की अपेक्षा है. आपको इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service