स्कूल में मध्यांतर हुआ |सब बच्चे अपने अपने टिफिन बॉक्स लेकर मैदान में जमा थे |रीना बड़े चाव से दादी के हाथ के बने आलू के पराठे खा रही थी |उसकी सहेली कुहू टिफिन खोल कर चुपचाप बैठी थी|
“कुहू जल्दी से टिफिन ख़त्म करो, घंटी बजने वाली है “
“रीना मुझे गणित का सवाल नहीं आया |देखना, मुझे शून्य अंक मिलेगा और घर पर मम्मी की डांट पड़ेगी| “
“हाँ कल मुझे भी नहीं आ रहा था| तुमने नेट पर सर्च किया था?”
“किया था |अर्जुन अकादमी व मैथ्स ऑन लाइन दोनों पर उदाहरण देखे थे |मैं बार बार गलती कर जाती थी |ठीक से समझ में नहीं आया |”
“अरे ये तो मेरी मम्मी ने भी बताईं थीं |उन्होंने कहा था इन दोनों साईट्स पर अच्छा समझाया है|”
“तुम्हें समझ में आया ?”
“नहीं कुहू ,रात डिनर लगने तक सवाल किये पर सारे सवाल सही नहीं लग पाते थे |खाने के समय मैंने दादाजी से पूछा कि ३ मजदूर ४ दिन में एक दीवार बनाते हैं तो ६ मजदूर उस दीवार को कितने दिन में बनायेंगे ?दादाजी ने बताया कम लोग काम करेंगे तो उन्हें ज्यादा समय लगेगा, अतः गुणा करेंगे| ज्यादा लोग मिलकर काम करेंगे तो जल्दी कर लेंगे, अतः भाग करना होगा |है न आसान |”
कुहू की आँखें भर आयीं, घर में किससे पूछे अपने सवाल ?
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मौलिक व अप्रकाशित
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आदरणीया मनीषा जी बहुत अच्छी लघुकथा हुई है. हार्दिक बधाई ... आधुनिक जीवन शैली में संयुक्त परिवार और बुजुर्गों की महत्ता को अभिव्यक्त करती प्रभावशाली पंचलाइन हुई है. सादर
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