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वो माँ विहीना / लघुकथा / कान्ता राॅय

बचपन में ही माँ का स्वर्गवास हो जाना और पिता का दुसरी शादी ना करने का निर्णय उस नन्हीं सी जान का अपने मामा के यहाँ पालन - पोषण का कारण बनी ।

मामी के सीने पर मूंग दलने के समान होने के बावजूद वो पल - पल बढती हुई ,उससे पिंड छुडाने के आस अब जाकर पूरी हो चुकी थी ।

शहर में पिता के पास पहुँचा दी गई ।
पिता को क्या मालूम बेटियाँ कैसे पाली जाती है !
लेकिन बेटी को मालूम था कि बेटियाँ माँ ,बहन और बेटी कैसे बनती है इसलिए दिन सुहाने से हो चले थे पिता और पुत्री दोनों के ।

खुशियाँ दो दिन की ही मेहमान ठहरी । खुशियों के पैरों में चक्कर होते है इसलिए वो टिक कर कहीं नहीं रहती है ।

बिना माँ की जवान होती बेटी पर अचानक रिश्तेदार से लेकर आस - पडोस वाले तक कोई बाप तो कोई माँ , भाई की भूमिका के आड़ में उस पर नजर रखने लगे ।

पिता को अपनी बेटी से अधिक दुसरे बेटी वालों के तजुर्बे पर अधिक भरोसा था ।

माँ की ममता तलाशती हुई उस माँ विहीना को सिर्फ शक , ताने और सौ प्रतिबंध मिले ।
वो मासूम आज भी पिता के अंगुलियों के सहारे उनके हथेलियों में .... संवेदनहीन आँचलो के नीचे माँ को तलाशती फिरती चलती है ।



मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by Saurabh Pandey on August 21, 2015 at 12:06am

लघुकथाओं में भी कथानक के साथ वातावरण का भी अपना अलग ही महत्त्व हुआ करता है आदरणीया कान्ताजी. परन्तु यह भी सही है कि लघुकथा एक तरह से सटीक किस्साग़ोई चाहती है. अतः वर्णन को कुछ और कसावट दीजिये.

इसप्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद 

Comment by kanta roy on August 13, 2015 at 11:44am
मुझे और भी सार्थक लेखन के लिये प्रेरित करती हुई आपके हौसला वर्धक प्रतिक्रिया हेतु तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय लक्ष्मण रामानुज जी ।
Comment by kanta roy on August 13, 2015 at 11:41am
आभार तहे दिल से आपको रचना पसंदगी के लिए आदरणीय पवन कुमार जी ।
Comment by kanta roy on August 13, 2015 at 11:40am
मेरा हौसला बढाने के लिये आभार आपको आदरणीया अर्चना जी ।
Comment by kanta roy on August 13, 2015 at 11:39am
आदरणीय मिथिलेश जी , आपको कथा पसंद आई तो जरूर ही कथा सही ही बनी होगी मेरे मन को एक तसल्ली हुई । तकनीकी दृष्टि से आपके द्वारा की गई प्रतिक्रियाओं का मुझे बेसब्री से इंतजार रहता है । कई नई बातें मन में कौंध कर सीखा जाती है । आभार आपको
Comment by kanta roy on August 13, 2015 at 11:36am
एक बिन माँ की बच्ची का दर्द को महसूस कर मैने इस रचना का प्रयास की है । आपका पसंद आना कथा का मेरे लिए सुखद एहसास है । आभार आपको आदरणीय तेजवीर जी ।
Comment by kanta roy on August 13, 2015 at 11:34am
इस मंच पर हम सबकी उपस्थिति ही हमें एक दुसरे से मुखातिब रखती है हमेशा आदरणीया प्रतिभा जी । मैने प्रयास किया कुछ सच्चे दर्द को लघुकथा के माध्यम से व्यक्त करने की । मेरी ये प्रयास आपको छू कर निकली है तो मेरा लिखना सफल हुआ । आभार आपको हृदयतल सो ।
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 11, 2015 at 12:36pm

 संवेदनहीन आँचलो के नीचे माँ को तलाशती माँ विहीना बेटी की  मार्मिक लघु कथा के लिए बधाई  आदरणीया कांता रॉय जी 

Comment by Pawan Kumar on August 11, 2015 at 11:08am

ममता के अभाव में जी रही बच्ची के जीवन को आपने बहुत ही मार्मिक ढंग से उकेरा है
सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।

Comment by Archana Tripathi on August 10, 2015 at 5:19pm
बिन माँ की बच्ची यह बात ही पीड़ा दायक हैं।कथा अत्यंत मार्मिक हैं।हार्दिक बधाई आपको

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