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आशा का लाभ (लघुकथा)

बर्न वार्ड के बाहर भैंसे  पर सवार यमराज खड़े थे 

" प्रभु क्या सोच रहे हैं ? जल्दी प्राण हरिये और चलिए I आप तो मेरे ऊपर सवार घंटे भर से उस स्त्री को देखे जा रहे हैं,मेरी पीठ की दशा का भी कुछ ध्यान है ?"

"इस पुरुष ने अपनी पत्नी को जलाने का प्रयास किया और स्वयं जल गया I और ये स्त्री ,अपने सारे गहने बेच कर इसका इलाज करवा रही है, देखो कैसे बदहवास बाहर खड़ी रोये जा रही है Iमैं सोच रहा हूँ पुत्र ..............."

"कि इसके प्राण छोड़ दूं .,यही ना प्रभु ?और ये पुरुष ठीक होकर फिर से पत्नी को प्रताड़ित करे "

"ये भी तो हो सकता है कि सुधर जाये Iक्यों न इसको दे ही दिया जाय?"   

"क्या प्रभु ? बेनिफिट ऑफ़ डाउट ?"

"नहीं पुत्र, बेनिफिट ऑफ़ होप "

.

मौलिक व् अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 28, 2015 at 4:21pm

 टंकण त्रुटी- भेंसे को भैंसे कर लीजिये सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 28, 2015 at 4:17pm

आदरणीया प्रतिभा जी बहुत बढ़िया लघुकथा कही है आपने. बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर. 

वैसे वह पुरुष बेनिफिट के लायक नहीं है लेकिन फिर भी नारी के हृदय की विशालता है जो कथा गढ़ने के क्रम में भी 'बेनिफिट ऑफ़ होप' दे रही है. नमन है नारी जाति के धर्य, सहनशीलता और ममत्व को.

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