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" अरे ,रे , ये क्या कर दिया तूने | काट दिया उस पौधे को भी घाँस के साथ "| शर्माजी एकदम से चिल्ला पड़े उस छोटी लड़की पर जिसने उनसे उनकी लॉन में से घाँस काटने के लिए पूछा था |

पेपर को किनारे रखते हुए वो उठे और लगभग धक्का देते हुए उसे लॉन से बाहर निकाल दिया | " पता नहीं फिर ये अंकुरित होगा या नहीं , कितने प्यार से लगाया था "|

छोटी लड़की उदास बाहर निकल गयी | पेपर उड़ कर घाँस पर आ गिरा , उसमे हेडलाइंस चमक रही थीं " इस साल फिर एक लड़की ने टॉप किया सिविल सर्विसेज में "| 

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by मिथिलेश वामनकर on July 7, 2015 at 4:22pm

आदरणीय विनय जी,

कथानक की कसावट और सधी हुई शैली में प्रस्तुत यह लघुकथा भीतर तक प्रभावित भी करती है और सोचने के लिए विवश भी करती है. इस दृष्टि से यकीनन यह एक सफल लघुकथा है. आपको इस बेहतरीन प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 7, 2015 at 3:26pm

बाल श्रम का किया  अपराध 

कन्या धन अब नही है घास 

बोया बीज हुआ अंकुरित 

नारी बिन नही सभ्य समाज . 

आपकी कथा यही कहती है . सादर बधाई बढ़िया कथा हेतु 

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