For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वफ़ा ढूंढा करोगे लोगों में ( © परी ऍम. 'श्लोक' )

१ २ २ २ १ २ १ २ २ २
पुकारा तुम करोगे लोगों में
मुझे ना पा सकोगे लोगों में

चले जायेंगे जां तेरी लेकर
बने बुत से जियोगे लोगों में

कटेगा भी नहीं सफ़र तन्हा
बेहिस चलते रहोगे लोगों में

मेरे जाने के बाद मुद्दत तक
मेरा रास्ता तकोगे लोगों में

मिलेगी फिर नहीं कभी जानाँ
वफ़ा ढूंढा करोगे लोगों में

© परी ऍम. 'श्लोक'

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 943

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 8, 2015 at 6:39pm

वाह .. अच्छा अभ्यास चल रहा है, परीजी..

शुभेच्छाएँ

Comment by वीनस केसरी on July 5, 2015 at 1:59am

वाह शानदार ग़ज़ल थी ....
सुधार के बाद और शानदार हो गयी है ...

Comment by Pari M Shlok on July 4, 2015 at 12:58pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपका तहे दिल से शुक्रिया शुभकामनाओं के लिए व हमारे अनुरोध पर यहाँ उपस्थित हो टिप्पणी देने के लिए :)

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 4, 2015 at 12:44pm

आ परी जी, बहुत बढ़िया संशोधन.... संशोधन के बाद अशआर निखर गए है -

पुकारा तुम करोगे लोगों में
नहीं फिर पा सकोगे लोगों में ..........बेहतरीन

कटेगा भी नहीं सफ़र तन्हा
भटकते तुम फिरोगे लोगों में ............ भटकते का बढिया प्रयोग .... शानदार शेर 

मेरे जाने के बाद मुद्दत तक
मेरा रस्ता तकोगे लोगों में ...... बढ़िया शेर.....दिल से दाद हाज़िर 

आपके सीखने का उत्साह और लगन देखकर सकारात्मक आभास हो रहा है और यकीन है कि आपके अभ्यास के क्रम में बेहतरीन ग़ज़लों से मंच समृद्ध होगा. शुभकामनायें 

सादर 

Comment by Pari M Shlok on July 4, 2015 at 11:11am
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के शेर दर शेर सुझाव के बाद हमने ग़ज़ल में सुधार किया है वो तीन शेर जिसमें गलती थी उसे ठीक करके कमेंट में डाल रहे हैं आप सब की राय चाहिए मिथिलेश वामनकर जी से अनुरोध है कि कृपया वो बतायें क्या सुधार की कोशिश सही रही।


पुकारा तुम करोगे लोगों में
नहीं फिर पा सकोगे लोगों में (1)

कटेगा भी नहीं सफ़र तन्हा
भटकते तुम फिरोगे लोगों में (3)

मेरे जाने के बाद मुद्दत तक
मेरा रस्ता तकोगे लोगों में (4)

© परी ऍम. 'श्लोक'
Comment by Pari M Shlok on July 3, 2015 at 9:36am
आपके द्वारा दिए गया लिंक पढ़ कर और जानकारी हासिल करेंगे मिथिलेश वामनकर जी शुक्रिया लिंक भेजने के लिए !
Comment by Pari M Shlok on July 3, 2015 at 9:34am
डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी हम अच्छे से नियम पढ़ेंगे बेशक बहुत ज़रूरी है नियम कायदे ग़ज़ल के जान लेना अच्छी ग़ज़ल कह पाने को। मार्गदर्शन हेतु शुक्रिया सर ...!
Comment by Pari M Shlok on July 3, 2015 at 9:31am
MAHIMA SHREE ji बहुत बहुत आभार।
Comment by Pari M Shlok on July 3, 2015 at 9:29am
shree suneel जी टिप्पणी के लिए दिल से आभार
Comment by shree suneel on July 2, 2015 at 9:25pm
पुकारा तुम करोगे लोगों में
मुझे ना पा सकोगे लोगों में.. ख़ूब.. ख़ूब.
ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही आपने आदरणीया. बधाइयाँ आपको.
बाकी.. गुणीजनो ने की राय आपके पास है हीं.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
14 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service