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अपने लहू के इक -इक कतरे का हिसाब चाहिए !
फंदे पर लटकते 'अफज़ल'और'कसाब'चाहिए!

जिनका बहा है खून जरा ,उनके दिल से पूछिए ,
जो देखा था आँखों ने वो , सुंदर सा ख्वाब चाहिए !

कितनी गैरत बाकि है इस देश में ,गैरों के लिये ,
क्यों ? ये मेहमान नवाजी इनकी .जवाब चाहिए !

जिंदगियोंमें जो अँधेरा किया, इन जालिमों ने ,
इनमे रोशनी भरने को, हजारों महताब चाहिए !

इनकी जड़ों को काट दो ,जहाँ से ये निकलती है ,
उन शहीदों की आत्माओं को, भी इंसाफ चाहिए !

दिल रोता है देख कर अपने, देश के कानूनों को ,
आतंकियों के लिये कानून बिलकुल सख्त और साफ चाहिए !

'कमलेश 'क्या हो गया है इस देश के कर्णधारों को ,
हमे वोटों और लाशों की गिनती का इनसे हिसाब चाहिए !!

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 10, 2010 at 11:00pm
कुछ ऐसी ही भावनाओ से मैने कुछ दिन पहले एक कविता लिखने का प्रयास किया था जिसे आप नीचे दिये लिंक पर देख सकते है,
http://www.openbooksonline.com/profiles/blogs/5170231:BlogPost:3334

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 10, 2010 at 10:56pm
इनकी जड़ों को काट दो ,जहाँ से ये निकलती है ,
उन शहीदों की आत्माओं को, भी इंसाफ चाहिए !

कमलेश भईया पूरी तरह झकझोर के रख दिया है ये आपकी ग़ज़ल और मुंबई की घटना आखो के आगे एक फिल्म की तरह चल रही है, ऐसे अपराधियो के साथ इतनी नर्मी से पेश आना भी क़ानूनन तो नही पर एक सामाजिक अपराध ही है, बहुत ही उम्द्दा रचना है भाई और काफ़ी सुंदर अभिव्यक्ति, बहुत बहुत धन्यबाद है आपको,आगे भी आप की रचनाओ का इंतजार रहेगा,

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