For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शक -- एक कश्मकश (लघुकथा )

तैयार होकर रीता आॅफिस के लिए निकलने ही वाली थी कि नील कह उठे कि आज वो ही उसे आॅफिस छोड़ आयेंगे ।
उसे समझते देर ना लगी कि , आज फिर नील पर शक का दौरा पड़ चुका है ।
थे तो वे आधुनिक व्यक्तित्व के धनी ही । पत्नी का कामकाजी होना , उनकी उदारता का परिचय है समाज में । इसी कारण वे स्त्री विमर्श के प्रति बेहद उदार मान पूजे जाते है समाज में ।
"मै चली जाऊँगी , आप नाहक क्यों परेशान होते हो ! आपके आॅफिस का भी तो यही वक्त है । " - उसके आँखों में दुख से आँसू छलछला आये ।
"क्यों , तुम मुझे अपने आॅफिस के लोगों से दूर रखना चाहती हो ..? रात में विशाल का फोन आया था किसलिए ....? " -- नील ने सहसा चिल्लाकर कहा तो रीता की आँखों में चिंगारी भर उठी ।
"आपको शर्म आनी चाहिए , आप मुझ पर फिर शक कर रहे है ? आज की मीटिंग का टाईम चेंज हुआ था इसलिए फोन किया था बताने को । "
"चलिये , आॅफिस पहुँचा दिजिये मुझे । "-- बातों को तूल देने से अब बचना चाहती थी वो ।
" नहीं , तुम चाहती हो कि मै दूर रहू तुम्हारे पुरूष मित्रों से ...तो यही सही, रहने दो अब मै नहीं जाता तुम्हें पहुँचाने । "
" वो सहकर्मी है मेरे । "
रीता का अब दम घुटने लगा था । शक्की पति ... ! वो क्या करें ?
नील के बेइंतहा प्यार उसे आकंठ डुबो देता ,तो दूसरी ओर शक्की स्वभाव उसके स्वाभिमान को अक्सर तार -तार कर जाता था।
झगड़ा बढ़ने पर वो तलाक़ के बारे में भी सोचती थी , लेकिन पैर न उठते थे कि बिछोह का गम नील सह नहीं पायेगें ..... कहीं कुछ उन्हें हो गया तो ....?

कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 587

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 28, 2015 at 4:27am

जोर का झटका 

गज़ब का कथानक 

बेहतरीन प्रस्तुति 

कशमकश को बहुत बढ़िया ढंग से अभिव्यक्त किया है आपने 

पुरुष की मानसिकता का सत्य और स्त्री की मनोदशा को जिस संतुलित तरीके से प्रस्तुत किया है मुग्ध हो गया हूँ इस लघुकथा पर. आपको इस लघुकथा के लिए दिल से बधाई दे रहा हूँ .... 

इस विधा में आपकी पकड़ दिख रही इस रचना में.

बढ़िया कसावट 

बधाई बधाई ढेर सारी बधाई 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 26, 2015 at 9:11pm

शक का कोई इलाज नहीं!बहुत ही सुन्दर आ० हार्दिक बधाई!

Comment by Omprakash Kshatriya on June 26, 2015 at 8:49am

आदरणीया कांता जी 

आप ने नारी की मनोदशा का बेहतर चित्रण किया है . बधाई आप को .

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 25, 2015 at 8:41pm

शक भी वही करता है जो बेहद प्यार भी करता है.....आपने बिल्कुल सच कहा है....आ0 कांता जी. सादर

Comment by kanta roy on June 25, 2015 at 12:10pm
आदरणीय डा. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी , आपने अपने बडे़ होने के नाते मेरा उचित मार्गदर्शन किया है अभी । मैने नाम एडिट कर लिये है । आशा है कि हमेशा ऐसे ही मेरी त्रुटियों को इंगित कर मुझे सार्थक लेखन की ओर मेरा मार्ग प्रश्सत करेंगे । नमन
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 25, 2015 at 10:51am

इस कथा में सीता और राम का रूपक लेना  अनावश्यक लगता है . सामान्यतः एक शक्की पति की मनोदशा को भुगतती  आधुनिक नारी की संवेदना ही इस्में ख़ास है .सादर .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service